अन्तर्राष्ट्रीय

भारत की बेटियों को नेपाल में नागरिकता देने पर बवाल, संसद से पारित विधेयक पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर से इनकार

 

काठमांडू। नेपाल में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर बवाल मचा हुआ है। इस विधेयक को खास तौर पर भारतीय बेटियों को नेपाल की नागरिकता देने के लिए तैयार किया गया है। इसके बावजूद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने नेपाली संसद के दोनों सदनों से पारित विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। जब की इससे पहले उन्होंने विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया था। जिसके बाद संसद ने नागरिकता संशोधन विधेयक को दोबारा राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के पास भेजा। राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की करीबी बताई जाती हैं। ओली शुरू से ही इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं।

15 दिन के भीतर करने थे हस्ताक्षर
नेपाली संसद के अध्यक्ष अग्नि प्रसाद सापकोटा ने पांच सितंबर को विधेयक को दोबारा मंजूरी दी थी। जिसके बाद उसे राष्ट्रपति भंडारी के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था। संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को 15 दिन के भीतर विधेयक पर हस्ताक्षर करने होते हैं मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया है। यह समयसीमा मंगलवार आधी रात को खत्म हो गई। नेपाल सरकार और उसमें शामिल घटक दलों का दावा है कि राष्ट्रपति भंडारी विधेयक पर हस्ताक्षर न करके संविधान का उल्लंघन कर रही हैं।

नागरिकता में संशोधन क्यों करना चाहता है नेपाल
नेपाल के नागरिकता कानून में द्वितीय संशोधन, मधेस समुदाय केंद्रित दलों और अनिवासी नेपाली संघ की चिंताओं को दूर करने के उद्देश्य से किया गया था। विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलने से राष्ट्रीय पहचान पत्र प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे कम से कम पांच लाख लोग प्रभावित हुए हैं। विधेयक में वैवाहिक आधार पर नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है और गैर-दक्षेस देशों में रहने वाले अनिवासी नेपालियों को मतदान के अधिकार के बिना नागरिकता देना सुनिश्चित किया गया है।

संशोधन न होने से भारतीय बेटियों को नुकसान
इससे समाज के एक हिस्से में रोष है और कहा जा रहा है कि इससे विदेशी महिलाएं नेपाली पुरुषों से शादी कर आसानी से नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी। नेपाली युवकों की सबसे ज्यादा शादी भारत में होती है। ऐसे में भारत की बेटियां नेपाली युवकों से शादी करने के बाद भी वहां की नागरिक नहीं बन पाएंगी। ओली पहले भी भारत के खिलाफ कई कदम उठा चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री रहने के दौरान भारत की तुलना में चीन के साथ नेपाल के संबंधों को प्राथमिकता दी।

क्या है विशेषज्ञ की राय
नेपाल के संविधान विशेषज्ञ और वकील दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है। राष्ट्रपति ने संविधान का उल्लंघन किया है। हमारे सामने गंभीर संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। राष्ट्रपति संसद के विरुद्ध नहीं जा सकतीं। संसद द्वारा पारित विधेयक को अनुमति देना राष्ट्रपति का दायित्व है। पूरी संवैधानिक प्रक्रिया पटरी से उतर गई है। त्रिपाठी ने कहा कि संविधान की व्याख्या का अधिकार सिर्फ उच्चतम न्यायालय के पास है, न कि राष्ट्रपति को।

हालांकि, राष्ट्रपति कार्यालय के अनुसार, भंडारी ने संविधान के मुताबिक कार्य किया है। राष्ट्रपति के राजनीतिक मामलों के सलाहकार की माने तो, राष्ट्रपति संविधान के अनुरूप कार्य कर रही हैं। विधेयक से कई संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ और उसकी रक्षा करना राष्ट्रपति का दायित्व है।

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