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चैत्र नवरात्रि पर इस शुभ मुहूर्त में करें घटस्थापना, जानिए पूजा विधि और सामग्री

चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 02 अप्रैल को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हो रहा है। चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल से शुरु होकर 11 अप्रैल तक है। 02 अप्रैल को घटस्थापना या कलश स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही नवदुर्गा की पूजा प्रारंभ होगी, जो पूरे 09 दिनों तक होगी। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना कैसे करते हैं, घटस्थापना पूजन सामग्री क्या है? इन सबके बारे में जानना जरूरी है। यदि किन्हीं कारणों से पंडित जी उपलब्ध नहीं हैं, तो आप स्वयं कलश स्थापना सामान्य तरीके से कर सकते हैं। आइए जानते हैं कलश स्थापना मुहूर्त, सामग्री एवं घटस्थापना विधि के बारे में।

बता दें कि 01 अप्रैल, दिन गुरुवार को सुबह 11:53 मिनट पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ हो रहा है। वहीं 02 अप्रैल, दिन शुक्रवार, सुबह 11:58 मिनट पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का समापन हो रहा है।

कलश स्थापना मुहूर्त के बारे में बात करें तो सुबह 06 बजकर 10 मिनट से सुबह 08 बजकर 31 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है और दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक तक शुभ मुहूर्त है।

घटस्थापना पूजन सामग्री में मां दुर्गा की नई मूर्ति या तस्वीर, लाल रंग की चौकी, पीला वस्त्र, एक आसन, नई लाल रंग की चुनरी, मिट्टी का एक कलश, आम की 5 हरी पत्तियां, मिट्टी के बर्तन, लाल सिंदूर, गुड़हल का फूल, फूलों की माला, श्रृंगार सामग्री, एक नई साड़ी, अक्षत्, गंगाजल, शहद, कलावा, चंदन, रोली, जटावाला नारियल, सूखा नारियल, अगरबत्ती, दीपक, बत्ती के लिए रुई, केसर, नैवेद्य, पंचमेवा, गुग्गल, लोबान, जौ, गाय का घी, धूप, अगरबत्ती, पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची, कपूर, फल, मिठाई, उप्पलें, एक हवन कुंड, आम की सूखी लकड़ियां, माचिस, लाल रंग का ध्वज, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती, दुर्गा आरती की किताब शामिल करें।

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना विधि

1. पूजा घर में पूर्व या उत्तर दिशा में घटस्थापना के लिए स्थान चुनें, वहां साफ सफाई करें।
2. उस स्थान को गंगाजल से पवित्र कर लें।
3. उस जगह पर साफ मिट्टी बिछा दें, फिर जौ छिड़कें, उस पर मिट्टी की एक परत डाल दें।
4. अब वहां पर पानी छिड़क दें. अब इसके ऊपर कलश स्थापना करें।
5. कलश में गंगाजल, यमुना, कावेरी आदि पवित्र नदियों का जल भर दें. उसमें एक सिक्का डालें।
6. इस दौरान वरुण देव का मन में ध्यान करें।
7. अब कलश के मुख पर रक्षा सूत्र यर ​कलावा बांध दें। फिर उसके मुख को मिट्टी के एक कटोरी से ढंक दें।
8. उस कटोरी को जौ से भर दें। अब एक सूखे नारियल में कलावा लपेट दें।
9. फिर उसे कलश के ऊपर रखी जौ वाली कटोरी में स्थापित कर दें।
10. कलश को गणपति का स्वरूप मानते हैं। इस वजह से सबसे पहले श्रीगणेश यानी कलश का पूजन करते हैं।

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