
राजेंद्र बहादुर सिंह

महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार में विपक्षी दलों को चुनावी हार से कई महत्वपूर्ण सबक सीखने की जरूरत है, जबकि भाजपा को तीनों राज्यों की जीत ने नई ऊर्जा और राजनीतिक मजबूती प्रदान की है।
महाराष्ट्र, हरियाणा, उड़ीसा के बाद बिहार में हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा-नेतृत्व वाली गठबंधन सरकारों की पुनः जीत विपक्ष के लिए चेतावनी के साथ आत्म मंथन है। हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने में भाजपा की सफलता ने दिखाया कि मजबूत संगठन, विकास के कामों का प्रचार प्रसार और जनसंपर्क अभियान कितने प्रभावी हो सकते हैं। वहीं महाराष्ट्र के चुनाव में भी भाजपा ने आदर्श गठबंधन के साथ मिलकर सत्ता मजबूत की। बिहार में 2025 के चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने रिकॉर्ड बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन और कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को बड़े झटके लगे। बिहार में भाजपा ने पहली बार सबसे अधिक सीटें जीतीं, वहीं प्रमुख विपक्षी दलों में अंतर्विरोध और रणनीतिक कमजोरियां सामने आईं।
विपक्ष की हार से यह स्पष्ट हुआ कि नेता और पार्टी संगठन को जनभावनाओं को समझने और स्थानीय स्तर पर विकास के वादों को सच्चाई में बदलने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विपक्षी दलों के बीच असंगति, कमजोर जनसंपर्क और प्रभावी नेतृत्व की कमी ने उनके लिए बड़ी चुनौती खड़ी की। खासकर बिहार में महागठबंधन के अंदर मतभेद, सीट बंटवारे और एकजुटता में कमी ने उनकी हार को और गहरा किया। कांग्रेस का भी अलग-थलग प्रदर्शन विपक्ष को परिणामों पर गंभीरता से पुनर्विचार के लिए मजबूर करता है। इसके अलावा, विकास, रोजगार, महिलाओं के सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय जैसे प्रमुख मुद्दों पर विपक्ष को अपनी रणनीति खोजनी होगी।
दूसरी ओर, इन राज्यों में भाजपा को मिली जीत ने पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर नई ऊर्जा और विश्वास दिया है। लगातार मिली सफलताओं ने पार्टी संगठन को मजबूत किया है और युवा कार्यकर्ताओं एवं मतदाताओं में प्रेरणा जगाई है। बिहार की जीत ने भाजपा और उसके नेतृत्व को यह स्पष्ट संदेश दिया कि विकास आधारित एजेंडा, मजबूत संगठनात्मक नेटवर्क और कड़ी मेहनत के साथ ही विकासोन्मुख प्रतिस्पर्धा से ही जीत संभव है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भी पार्टी की जीत ने मोदी और शाह के नेतृत्व में राजनीतिक ताकत को सुदृढ़ किया है, जिससे भाजपा आने वाले वर्ष में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में अपने किले मजबूत करने की तैयारी कर रही है ।
भाजपा की इन सफलताओं का एक बड़ा कारण पार्टी का चुनावी रखरखाव में सटीक रणनीतियों का होना है। पार्टी ने सामाजिक एवं आर्थिक विकास को चुनावी मुद्दा बनाया और विपक्ष की कमजोरियों का फायदा उठाया। तकनीकी और डिजिटल चुनाव प्रचार के जरिये व्यापक जनसंपर्क किया गया। स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करने के साथ-साथ जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को भांपकर वोट बैंक की सघन पैमाने पर पहचान की गई। इसके विपरीत विपक्षी दलों की रणनीति में विसंगति एवं संगठनात्मक कमजोरी नतीजों पर भारी पड़ी।अंत में, महाराष्ट्र, हरियाणा और फिर बिहार की हार से विपक्ष को अपनी अंदरूनी असहमति, कमजोर जनसंपर्क एवं प्रभावशाली नेतृत्व की कमी जैसी कमियों को दूर करने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में भी सपा के मुखिया अखिलेश यादव आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए कमर कस रहे हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लक्ष्य को लेकर बीजेपी का आत्मविश्वास चरम पर है। लेकिन समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल भी अपने-अपने इलाकों में लोगों से जुड़ने और वोट बैंक मजबूत करने के लिए रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। दलीय गठबंधन के फायदे और नुकसान पर चिंतन जारी है विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह बीजेपी की लोकप्रियता और विकास-अभियानों के सामने अपनी प्रासंगिकता आम जनता के सामने साबित करें। दूसरी ओर भाजपा इन जीतों से मिली ऊर्जा को बूस्ट कर आगामी विधानसभा चुनावों में नए रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हालिया विधानसभा चुनावों में दिल्ली, हरियाणा और बिहार में मजबूत प्रदर्शन कर प्रमुख विपक्षी नेताओं अरविंद केजरीवाल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और तेजस्वी यादव को राजनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में धकेल दिया है। 2025 के दिल्ली चुनाव में भाजपा ने 27 वर्षों बाद सत्ता हासिल की, जहां आम आदमी पार्टी (आप) की केजरीवाल सरकार को हटना पड़ा। हरियाणा में भाजपा ने तीसरी बार लगातार जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस के हुड्डा को व्यक्तिगत सफलता मिली पर पार्टी हारी। बिहार 2025 में एनडीए ने 202 सीटें जीतीं, तेजस्वी की आरजेडी को महज 25 सीटें मिलीं । हालांकि वोट शेयर 23% रहा। दलों के लिए यह मौके की घड़ी है कि वे अपने आप को फिर से संगठित करें, जनता के बीच पहुंच बढ़ाएं और चुनावी रणनीतियों को आधुनिक एवं व्यापक बनाएं ताकि आने वाले चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकें।इससे स्पष्ट होता है कि चुनाव जीतना सिर्फ बहुमत पाने का सवाल नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और जनसंपर्क की सियासी कला का मेला है, जिसमें फिलहाल भाजपा विपक्ष से एक नहीं कई कदम आगे है।
(लेखक वरिष्ठ एवं स्वतंत्र पत्रकार है। कई समाचार पत्रों के संपादक रहें हैं।)







