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दिल्ली में आज पहली बार कृत्रिम बारिश का ट्रायल, प्रदूषण घटाने की दिशा में बड़ा कदम

छठ महापर्व के समापन के साथ ही राजधानी दिल्ली में आज वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का ट्रायल किया जाएगा। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने मंगलवार को बताया कि यह दिल्ली में पहली बार किया जा रहा है। कानपुर से विमान के पहुंचते ही इस प्रक्रिया की शुरुआत होगी।

सिरसा ने बताया कि कानपुर में फिलहाल दृश्यता 2,000 मीटर है और जैसे ही यह 5,000 मीटर तक पहुंच जाएगी, विमान दिल्ली के लिए उड़ान भरेगा। उन्होंने कहा कि कृत्रिम वर्षा का उद्देश्य सर्दियों में बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना है। ट्रायल की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने बुराड़ी क्षेत्र के ऊपर एक प्रारंभिक उड़ान संचालित की थी, जिसमें सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे यौगिकों की कम मात्रा छोड़ी गई थी। हालांकि उस समय वातावरण में नमी का स्तर केवल 20 प्रतिशत था, जबकि कृत्रिम वर्षा के लिए कम से कम 50 प्रतिशत नमी आवश्यक होती है, इसलिए बारिश नहीं कराई जा सकी।

क्या है कृत्रिम बारिश?

कृत्रिम वर्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों की संरचना में रासायनिक रूप से परिवर्तन लाकर उन्हें बारिश के अनुकूल बनाया जाता है। इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया में विमान या ड्रोन के माध्यम से सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड और कभी-कभी ठोस कार्बन डाइऑक्साइड जैसे रसायन बादलों में छोड़े जाते हैं, जिससे जलकण एक-दूसरे से मिलकर वर्षा के रूप में गिरते हैं।

क्या आर्टिफिशियल बारिश में भीगना सुरक्षित है?

विशेषज्ञों के अनुसार, कृत्रिम बारिश में भीगना सामान्यतः सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसमें उपयोग किए जाने वाले रसायनों की मात्रा बहुत कम होती है। हालांकि, संवेदनशील त्वचा वाले लोगों, एलर्जी से पीड़ित व्यक्तियों या अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याओं वाले लोगों को इससे बचने की सलाह दी जाती है, क्योंकि हल्की जलन या बेचैनी हो सकती है।

IIT कानपुर के साथ दिल्ली सरकार का करार

दिल्ली सरकार ने 25 सितंबर को आईआईटी कानपुर के साथ कृत्रिम वर्षा के पांच ट्रायल करने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया था। नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने एक अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच किसी भी समय ट्रायल की अनुमति दी है।इस परियोजना को केंद्रीय पर्यावरण, रक्षा और गृह मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो सहित केंद्र और राज्य की 10 से अधिक एजेंसियों से स्वीकृति मिल चुकी है।सरकार का मानना है कि यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो आने वाले दिनों में दिल्ली की प्रदूषण समस्या से निपटने में यह तकनीक एक कारगर विकल्प साबित हो सकती है।

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