“सिनेमा समाज का आईना है, थिएटर उसका प्रतिबिंब’, अभिनेता सचिन जोशी से अंकित गोयल की खास बातचीत

सिनेमा और समाज के बीच गहरा सम्बन्ध होता है. सिनेमा समाज को प्रतिबिंबित करता है और समाज सिनेमा को प्रभावित करता है सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जो मनोरंजन के साथ साथ आपको मैसेज भी देता है. आगे बढ़ने मेँ मदद करता है आज हम इंटरव्यू करेंगे एक ऐसे ही कलाकार की जिसने सिनेमा के हर माध्यम जैसे टीवी सीरियल, वेब सीरीज़ मेँ काम कर चुके हैं उन्हे विज्ञापन किंग के नाम से भी जाना जाता है अभिनय यात्रा और उससे सम्बंधित सवाल के लिए अंकित कुमार गोयल की अभिनेता सचिन जोशी से विशेष बातचीत के अंश…
आपकी अभिनय यात्रा की शुरुआत कैसे हुई थी और परिवार का कितना सहयोग मिला था?
उत्तर: मैं बचपन से ही एक अभिनेता बनना चाहता था। जो फ़िल्म या किरदार अच्छा लगता था मैं उसे घर मे अपने तरीके से निभाने की कोशिश करता था यह सब मेरी फैमिली नोटिस करती थी और वो समझ चुके थे की मै एक अभिनेता ही बनना चाहता हूँ और फैमिली का पूरा सपोर्ट मिला।फिर मैंने एक थिएटर ग्रुप मे ऑडिशन दिया ( द फिल्म्स एंड थिएटर सोसाइटी ) जिसके प्रेसिडेंट श्री अतुल कौशिक जी हैं उन्होंने मुझे अपने ग्रुप में शामिल किया और फिर मेरी थिएटर की जर्नी शुरू हो गई, साथ ही साथ मैंने मीडिया जैसे टीवी एडवर्टिजमेंट,प्रिंट एडवर्टिजमेंट,टीवी सीरियल, वेब सीरीज़ आदि के ऑडिशन देता रहा और काम मिलना शुरू हो गया।
आपके अनुसार अभिनय मेँ सबसे महत्वपूर्ण पहलू क्या है और उसे कैसे अपने अभिनय मै लागू करते हैं?
उत्तर : आप अभिनय पर कई तरह की चर्चा कर सकते हैं दिल्ली और मुंबई मे अच्छे अभिनेताओं की कमी नहीं है…कमी है अच्छे व्यवहार वाले अभिनेताओं की कमी है , अच्छे व्यवहार से मेरा मतलब है आप जब शूटिंग पर जाते है तो आपका किस तरह का व्यवहार होता है डायरेक्टर से, मेक अप दादा से, लाइट मेन से, स्पॉट दादा से ये सब अभिनय के बराबर महत्वपूर्ण हैं और आपको अपने डायरेक्टर की रिक्वायरमेंट समझना बहुत ज़रूरी हैं और डायरेक्टर को कॉन्फिडेंस मे लेना बहुत ज़रूरी है की आप स्क्रिप्ट और किरदार की ज़रूरत समझ गए है और आप कर लेंगे । और मेरा मानना है कि अभिनय करने की परिभाषा हर एक अभिनेता की अपनी होनी चाहिए जैसे मैं स्क्रिप्ट पढ़ते ही स्क्रिप्ट की और किरदार की ज़रूरत समझ जाता हूँ डायरेक्टर को मुझे ज़्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मेरा मानना है कि अभिनेता को एक अच्छा ऑब्ज़र्वर और अच्छी इमेजिनेशन होनी चाहिए इससे एक किरदार तैयार करने मे काफ़ी मदद मिलती है ।
किसी समाज या देश के निर्माण मेँ थिएटर का क्या योगदान है?
उत्तर : थिएटर समाज का ही आइना है जो हमारे समाज या देश मे होता आ रहा है वही थिएटर के माध्यम से दिखाने की कोशिश की जाती है सबको जागरूक करने के लिए।इसका सबसे अच्छा उधारण है नुक्कड़ नाटक जिसमे जगह जगह जाकर गलियो मे चौराहों पर नाटक दिखाया जाता है अलग अलग विषय पर।
आपको विज्ञापन किंग के नाम से भी जाना जाता है कैसे ये नाम पड़ा, कोई किस्सा बतायें?
उत्तर : मेरे मीडिया करियर की शुरुआत एक विज्ञापन से ही शुरू हुई थी और अभी तक मैं 500 से ज़्यादा विज्ञापन कर चुका हूँ प्रिंट और वीडियो मिलाकर। मै कई डायरेक्टर्स के साथ काम कर चुका हूँ और कई शूट्स में बार बार एक ही डायरेक्टर मिलते है तो ऐसे ही एक डायरेक्टर ने बोला आप तो ऐड किंग है इतने एड्स करते है ऐसे ही सेम एक्टर्स बार बार मिलते है तो उन्होंने भी बोलना शुरू कर दिया ऐसे करके मेरा नाम ऐड किंग पड़ गया ।
आप टीवी सीरियल, वेब सीरीज़, विज्ञापन और थिएटर सभी माध्यम मेँ काम कर चुके हैं, सबसे ज्यादा आत्म संतुष्टी किस माध्यम मेँ लगती है, और क्यों?
उत्तर : आत्म संतुष्टि तो सभी मीडियम से मिलती है क्यूंकि सभी मीडियम की अलग रीच है थिएटर की अलग रीच है और मीडिया की अलग रीच है पर हाँ मुझे थिएटर करके एक आत्म संतुष्टि ज़रूर मिलती है क्यूंकि ऑडियंस का रिस्पांस आपको हाथो हाथ मिल जाता है। चाहे वो प्रशंसा हो या आलोचना ।
आपके लिए एक अच्छी स्क्रिप्ट क्या होती है और आप कैसे तय करते हैं कि कोई प्रोजेक्ट आपके लिए सही है या नहीं?
उत्तर : मेरे हिसाब से एक अच्छी वही होती है जिसकी एक अच्छी स्टोरी लाइन हो और अच्छे किरदार हो जिसे पढ़के आपको लगे की इसके किरदार वाक़ई मे रियल है ।अगर स्क्रिप्ट मे चीप और वल्गर कांटेंट होता है तो मै मना कर देता हूँ क्यूँकि उससे समाज पर गलत असर पड़ता है ख़ासकर नौजवानों पर