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बिहार की सियासत में पप्पू यादव की अनदेखी या रणनीति का हिस्सा?

पटना।बिहार की राजनीति में जन अधिकार पार्टी (JAP) के संस्थापक और कई बार सांसद रह चुके पप्पू यादव हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। जनता के बीच उनकी पकड़ और सक्रियता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन जब भी गठबंधन की राजनीति की बात आती है, लालू प्रसाद यादव का परिवार और पप्पू यादव एक-दूसरे से दूरी बनाते नजर आते हैं। हाल के घटनाक्रम ने एक बार फिर इस बहस को हवा दे दी है।

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी वोटर अधिकार यात्रा पर हैं। इस यात्रा में उनके साथ बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी मंच साझा कर रहे हैं। एक रैली के दौरान राहुल और तेजस्वी एक ट्रक पर यात्रा कर रहे थे, उसी वक्त पप्पू यादव भी उस ट्रक पर चढ़ने की कोशिश करते दिखे। मगर उन्हें चढ़ने का मौका नहीं मिला। घटना मामूली थी, लेकिन मीडिया में इस पर सवाल उठने लगे कि क्या लालू परिवार अब भी पप्पू यादव को अपने करीब नहीं आने देना चाहता?पप्पू यादव ने इस मुद्दे पर कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी और इसे सकारात्मक तरीके से लिया। बावजूद इसके, राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई।

अब ताज़ा मामला और दिलचस्प है। राहुल गांधी की एक सभा के दौरान सामने आई तस्वीरों में देखा गया कि पप्पू यादव मंच पर नहीं, बल्कि नीचे बैठे नजर आए। मंच पर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अन्य सहयोगी दलों के नेता मौजूद थे, लेकिन पप्पू यादव को जगह नहीं मिली। इस तस्वीर ने एक बार फिर पुराने सवालों को ताज़ा कर दिया क्या वाकई आरजेडी और पप्पू यादव के बीच रिश्ते सहज नहीं हैं?

हालांकि अभी तक न तो पप्पू यादव और न ही तेजस्वी यादव ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है। लेकिन सोशल मीडिया पर यह तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं। लोग अलग-अलग तरह की व्याख्याएं कर रहे हैं। कुछ इसे जानबूझकर की गई अनदेखी बता रहे हैं तो कुछ इसे महज राजनीतिक प्रोटोकॉल का हिस्सा मान रहे हैं।

सवाल यही है कि क्या यह केवल संयोग है या फिर सचमुच लालू परिवार और पप्पू यादव के बीच अब भी खटास मौजूद है? पप्पू यादव खुद को जनता का नेता बताते हैं और हर संकट में सक्रिय रहते हैं, लेकिन गठबंधन की राजनीति में उनकी भूमिका सीमित क्यों रखी जाती है, यह सवाल लगातार उठ रहा है।बहरहाल, यह मुद्दा फिलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है और बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में इसके राजनीतिक संकेत और स्पष्ट हो सकते हैं।

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