” चुप्पी भी एक नीति है “

विवेक तिवारी
वरिष्ठ पत्रकार
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य टकराव के बाद देश में कुछ लोगों के द्वारा कुछ सवाल बार बार उठाये जा रहे।
“सरकार यह क्यों नहीं बता रही कि हमारे कितने विमान गिरे?
क्या यह पारदर्शिता के खिलाफ नहीं है?”
इस भावना को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन इस भावना में यदि कूटनीति, रणनीति और सुरक्षा के कोण से सोचें, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हर जानकारी का समय पर सार्वजनिक न होना, राष्ट्रविरोधी नहीं बल्कि राष्ट्ररक्षक होता है।
क्या हर सूचना सार्वजनिक होनी चाहिए?
लोकतंत्र में सरकारें जनता को जवाबदेह होती हैं। लेकिन युद्धकालीन स्थितियों में रणनीतिक गोपनीयता अनिवार्य हो जाती है। एक विदेशी मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारत के CDS अनिल चौहान ने इस प्रश्न के उत्तर में जो कहा वह बेहद सधा और संतुलित है।उन्होंने कहा नुकसान क्यों हुआ ये समझकर उसे ठीक करना ज़रूरी था और भारत ने ऐसा ही किया और उसके बाद भारत के विमानों ने पाकिस्तान में गहरे घुसकर अपने लक्ष्य हासिल किए।अब सवाल पूछने वाले ये जानने के लिए बेचैन है कि कितने जेट गिरे? क्या जेट का प्रकार या संख्या इस सत्य से बड़ी है कि भारत ने पाकिस्तान को अच्छे से धोया !
हमे जनता को अपनी सेना पर भरोसा रखना होगा। भारतीय वायुसेना और रक्षा मंत्रालय यह जानते हैं कि कौन सी बात कहनी है और कब कहनी है। युद्ध कोई प्रेस वार्ता नहीं, जिसमें हर प्रश्न का उत्तर तुरन्त देना ज़रूरी हो। यदि आज सरकार अपने कुछ नुकसानों को सार्वजनिक नहीं कर रही है तो वो लोकतंत्र को चोट नही पहुँचा रही है। वह बस वही कर रही है जो हर मजबूत राष्ट्र करता है — पहले युद्ध जीतो, फिर किताब लिखो।
यह भी ज़रूरी है कि देश की मीडिया और राजनीतिक दल इस समय धैर्य और ज़िम्मेदारी दिखाएँ। एक विमान की पुष्टि के बदले पूरे सामरिक परिदृश्य की कमजोरी का उद्घाटन हो सकता है। यह ऐसा समय है, जहाँ राष्ट्रहित में कुछ सवालों को समय के हवाले कर देना ही बेहतर है।इस संबंध में ऐसी रणनीतिक चुप्पी इतिहास में कब-कब ताकत बनी ऐसे कुछ उदाहरण
1973 का इज़राइल यौम किप्पुर : इसमे युद्ध विमानों की क्षति हुई लेकिन आंकड़े न बताने से लड़ाई में मनोबल बना रहा | 1982 UK (ब्रिटेन) फॉकलैंड युद्ध में जहाज डूबने की पुष्टि देर से की गयी और रणनीति सफल रही |1999 भारत कारगिल युद्ध में LOC पार घुसपैठ की मात्रा विजय के बाद खुलासा किया गया,यह एक सफल रणनीति साबित हुई। 4.2022 रूस यूक्रेन युद्ध में रूस को टैंके और विमान की क्षति हुई लेकिन संख्या पर अस्पष्टता बरकरार
यह सच है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता आवश्यक है, लेकिन युद्ध के समय हर सच को समय से पहले बोलना, भावनात्मक निर्णय हो सकता है, बुद्धिमानी नहीं। भारत की यह चुप्पी न तो अस्वीकार है, न अनैतिकता। यह एक गणना है, एक प्रतीक्षा है — उस क्षण की जब सच बोलना हमारे लिए लाभकारी हो, दुश्मन के लिए नहीं। वैसे आज सोशल मीडिया की भेड़चाल में किस तथ्य को क्या बना दिया जाय और उसका कितना नुकसान हो ,यह अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। CDS ने अपने साक्षात्कार में खुद कहा कि 15 प्रतिशत हमारी ऊर्जा फेक खबरों से निपटने में लग गयी। ऐसे में आंकड़ों की सूचना देना,न देना,कब देना यह सब कुछ भारतीय सेना पर छोड़ कर उस पर अपना भरोसा रखिये। राष्ट्र रक्षा से बड़ा कुछ नहीं।