आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली कहावत कश्मीरी पीड़ित पीड़ितों के साथ बहादुरगढ़ में चरितार्थ होती देखी गई। 1990 में घटी घटना के बाद पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों ने बहादुरगढ़ में आशियाना बनाने के लिए जमीन खरीदी थी लेकिन यहां भी इनके साथ धोखा हुआ कुछ जमीन के दलालों और बहादुरगढ़ के तहसील कर्मियों की मिलीभगत के कारण इन द्वारा खरीदी गई ना तो जमीन मिली और ना ही पैसे। लेकिन कश्मीरी पंडितों ने हार नहीं मानी और 30 साल तक कोर्ट कचहरी में संघर्ष करते रहे और आज आखिरकार हरियाणा शहरी प्राधिकरण रोहतक द्वारा 184 कश्मीरी पंडितों को बहादुरगढ़ के सेक्टर 2 में प्लॉट अलॉट किए गए हैं । जिसे पाकर कश्मीरी पंडित आज काफी खुश नजर आ रहे थे । जम्मू कश्मीर और देश के कई अलग-अलग हिस्सों से पहुंचे कश्मीरी पंडितों और हरियाणा शहरी प्राधिकरण रोहतक के अधिकारियों के सामने ड्रॉ द्वारा 184 परिवारों को प्लॉट अलॉट किए गए हैं ।
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण की प्रशासनिक अधिकारी श्वेता हुड्डा ने बताया की 1991 और 92 में लगभग 212 कश्मीर पंडितों ने बहादुरगढ़ में घर बनाने के लिए जमीन खरीदी थी लेकिन इसमें काफी तकनीकी खामियां होने के कारण इन लोगों को 30 साल तक जमीन लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा है । उन्होंने बताया 28 परिवारों को 2016 में ही प्लॉट अलॉट कर दिए गए थे जबकि आज 184 परिवारों को प्लॉट अलॉट किए गए हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने अभी ज्वाइन किया है इसलिए अतीत में इन लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार हुआ इसके बारे में वह कुछ नहीं कहना चाहती। बरहाल आज 184 परिवारों को प्लॉट अलॉट किए गए जल्द ही इनको प्रोजेक्शन दे दी जाएगी।
1990 में कश्मीर हिंसा का शिकार हुए कश्मीरी पंडित लोकेश काजी ने बताया कि कश्मीर में लूटने पीटने के बाद उन्होंने बहादुरगढ़ में आशियाना बनाने के लिए जमीन खरीदी थी लेकिन उनके साथ यहां भी धोखा हुआ और ना उनको जमीन मिली ना पैसे। आखिरकार उन्होंने न्याय की शरण में जाना पड़ा जिसके चलते आज उन्हें अपना घर बनाने के लिए हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण सेक्टर 2 में प्लॉट अलॉट कर दिए जिसे पाकर वह काफी खुश हैं । उन्होंने बीते हुए दिनों को याद करते हुए कहा कि कश्मीर पर बनी फिल्म कश्मीर फाइल तो कुछ घटनाओं पर आधारित है लेकिन वह चश्मदीद गवाह है वहां इससे भी बड़ा नरसंहार हुआ है उस घटना में कुछ जीवित बचे लोग वहां से पलायन कर बहादुरगढ़ पहुंचे थे जहां उन्होंने आशियाना बनाने के लिए जमीन खरीदी थी लेकिन बहादुरगढ़ प्रशासन की गलतियों और कुछ लोगों की धोखेबाजी के कारण उन्हें 30 साल तक अथक संघर्ष करना पड़ा तब जाकर उन्हें अपने आशियाने की आज जमीन मिली है ।