वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरता भारत: मोदी की कूटनीतिक विजय

राजेंद्र बहादुर सिंह
आज वैश्विक राजनीति अस्थिरता के भंवर में फंसी हुई है।यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व संकट और अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव ने दुनिया को दो ध्रुवों में बांट दिया है। ऐसे में भारत ‘स्थिरता का स्तंभ’ बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक कुशलता ने भारत को न केवल ‘भारत प्रथम’ की नीति के साथ मजबूत किया है, बल्कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन से वैश्विक मित्रता भी गढ़ी है।अरब देशों से अमेरिका तक, रूस से चीन तक, हर मोर्चे पर मोदी सरकार ने साहसिक संतुलन साधा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का सबसे ठोस प्रमाण दुनिया भर से मिले सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं।
वर्ष 2014 से दिसंबर 2025 तक 29 देशों ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा है। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड है। हालिया सम्मान जैसे इथियोपिया का ‘द ग्रेट ऑनर निशान ऑफ इथियोपिया’ (2025), नामीबिया का ‘ऑर्डर ऑफ द मोस्ट एंशिएंट वेलविट्शिया मिराबिलिस’ (2025), ब्राजील का ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द नेशनल ऑर्डर ऑफ द सदर्न क्रॉस’ (2025) और त्रिनिदाद-टोबैगो का ‘ऑर्डर ऑफ द रिपब्लिक’ (2025) अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में भारत की पहुंच दर्शाते हैं।पश्चिम एशिया में जॉर्डन, ओमान और कुवैत (2024) के सम्मान ने सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया। सऊदी अरब का ‘ऑर्डर ऑफ किंग अब्दुल अजीज सैश’ (2016), यूएई का ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ (2019) और रूस का ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू’ (2019 घोषणा, 2024) और ओमान में प्रधानमंत्री को किसी देश का 29 वा सर्वोच्च सम्मान ओमान में मिला है ओमान के सुल्तान हैथम बिन तारिक ने श्री मोदी को ऑर्डर ऑफ ओमान सम्मान दिया है और उन्हें सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया है यह सम्मान एवं पुरस्कार बताते हैं कि मोदी ने भारत को व्यापारिक भागीदार से रणनीतिक साझेदार बनाया।
फ्रांस का ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ (2023) और अमेरिका का ‘लीजन ऑफ मेरिट’ (2020) पश्चिमी दुनिया की स्वीकृति हैं। ये सम्मान केवल व्यक्तिगत नहीं, 140 करोड़ भारतीयों की बढ़ती गरिमा के प्रतीक हैं। इसके इतर टैरिफ संकट के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता ने वैश्विक स्तर पर सिद्ध किया है कि यूं ही नहीं भारत को सोने की चिड़िया कहां जाता रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्डट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने भारतीय उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाए, जिससे निर्यात (विशेषकर स्टील, एल्यूमीनियम और फार्मा) प्रभावित हुआ। 2024 में व्यापार घाटा 30 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुंचा। लेकिन मोदी की ‘सॉफ्ट पावर पॉलिसी ने नया विकल्प प्रस्तुत किया । यह मोदी सरकार की कूटनीति का ही परिणाम है कि अमेरिकी सांसदों ने सदन में प्रस्ताव पारित कर टैरिफ हटाने की मांग की, क्योंकि भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था (2025 अनुमान) को नजरअंदाज करना अमेरिका के लिए घाटे का सौदा है।भारत ने जवाबी टैरिफ के बजाय बातचीत चुनी। परिणामस्वरूप, 2025 में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पहल के तहत सेमीकंडक्टर और AI सहयोग बढ़ा। द्विपक्षीय व्यापार 200 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया, जो 2014 के 100 बिलियन से दोगुना है। यह कूटनीति साबित करती है कि भारत अब निर्भर नहीं, बल्कि समान साझेदार है।
वहीं दूसरी तरफ चीन के साथ बर्फ पिघलना अभी मोदी सरकार की कुशल कूटनीति को इंगित करता है। भारत चीन के बीच गलवान संघर्ष (2020) के बाद लाइन ऑफ कंट्रोल पर तनाव चरम पर था। इस दौरान दोनों देशों के बीच मामूली संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति ने धैर्य एवं संयम का परिचय दिया। अक्टूबर 2024 के कजान ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मोदी कीमुलाकात ने डेपसांग और डेमचोक से सेनाओं की वापसी सुनिश्चित की। पेट्रोलिंग समझौता सीमा शांति का प्रतीक है।आर्थिक मोर्चे पर भारत ने 2023 में चीनी ऐप्स बैन और निवेश जांच सख्त की, जिससे चीन को झटका लगा। 2025 तक व्यापार 130 बिलियन डॉलर पहुंचा, लेकिन भारत ने घाटे (100 बिलियन) को कम करने के लिए PLI स्कीम से आत्मनिर्भरता बढ़ाई। यह ‘यथार्थवाद’ दिखाता है कि तनाव के बीच व्यापार, लेकिन हितों की रक्षा मैं भारत ने अपने हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया। ब्रिक्स और SCO जैसे मंचों पर सहयोग से एशिया में संतुलन बना। वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन-रूस युद्ध (2022 से) के दौरान भारत ने अपनी संतुलित एवं तटस्थ विदेश नीति से दुनिया को आकर्षित किया। पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से 40% कच्चा तेल खरीदा, जिससे महंगाई 6% पर नियंत्रित रही। मोदी-पुतिन की 18+ मुलाकातें (2025 वार्षिक शिखर सहित) ने S-400 डील और रक्षा निर्यात (2 बिलियन डॉलर) को मजबूत किया। पुतिन ने मोदी को ‘विश्वसनीय मित्र’ कहा, जबकि भारत ने G20 में ‘नॉट इन द यूनाइटेड नेशंस’ प्रस्ताव से संप्रभुता का संदेश दिया।2025 शिखर में 2030 तक 100 बिलियन डॉलर व्यापार लक्ष्य रखा गया। यह स्वायत्तता साबित करती है कि भारत किसी खेमे का पिछलग्गू नहीं बल्कि नेतृत्व कर्ताओं में से है।
(लेखक वरिष्ठ एवं स्वतंत्र पत्रकार है। कई समाचार पत्रों के संपादक रहें हैं।)








