सरदार पटेल की 75वीं पुण्यतिथि पर सीएम योगी की श्रद्धांजलि, कश्मीर विवाद के लिए नेहरू को ठहराया जिम्मेदार

देश के पहले गृह मंत्री और ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की 75वीं पुण्यतिथि पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आज भारत का जो स्वरूप है, उसके शिल्पी सरदार पटेल ही हैं और देश उन्हें सदैव कृतज्ञता के साथ याद करेगा।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सरदार पटेल का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनका उद्देश्य विदेशी हुकूमत की नौकरी करना नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभा और क्षमता को भारत माता के चरणों में समर्पित करना था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया, कई बार जेल की यातनाएं सहीं और देश के विभाजन का भी पुरजोर विरोध किया।
सीएम योगी ने कहा कि आजादी के समय ब्रिटिश शासन ने रियासतों को यह विकल्प दिया था कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हों अथवा स्वतंत्र रहें। ऐसे समय में हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे। सरदार पटेल की सूझबूझ और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही जूनागढ़ और हैदराबाद का भारत में विलय संभव हो सका। यह प्रक्रिया रक्तहीन क्रांति के माध्यम से पूरी हुई और अंततः नवाब और निजाम को देश छोड़कर भागना पड़ा।
मुख्यमंत्री ने कश्मीर मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर उनके हाथों में था, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे को इतना विवादित बना दिया कि वह आजादी के बाद भी लंबे समय तक देश के लिए चुनौती बना रहा। उन्होंने कहा कि उग्रवाद और अलगाववाद की समस्या उसी कश्मीर से जुड़ी रही। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि धारा 370 हटाकर कश्मीर को पूरी तरह भारत गणराज्य का हिस्सा बनाने का संकल्प पूरा किया गया।
सीएम योगी ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य रहा कि 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का भौतिक नेतृत्व समाप्त हो गया, लेकिन उनकी स्मृतियां, सेवाएं और देश के प्रति योगदान आज भी सभी के लिए नई प्रेरणा बने हुए हैं। गौरतलब है कि सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 1875 में गुजरात के नडियाद में हुआ था। स्वतंत्रता के बाद देश के पहले गृह मंत्री के रूप में उन्होंने 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय कराकर राष्ट्रीय एकता की मजबूत नींव रखी। उनका निधन वर्ष 1950 में हुआ था।







