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छात्र विद्रोह के मामलों में शेख हसीना को मौत की सजा, बांग्लादेश में भड़की हिंसा

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को पिछले वर्ष हुए छात्र विद्रोह के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई। फैसले के तुरंत बाद ढाका और अन्य शहरों में तनाव फैल गया और बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए।

ढाका में कई प्रमुख राजमार्गों को प्रदर्शनकारियों ने जाम कर दिया, जिसके बाद पुलिस के साथ तीखी झड़पें हुईं। सरकार को पहले से ही विरोध के बढ़ने की आशंका थी, इसलिए ICT का फैसला आते ही पूरे ढाका में भारी पुलिस बल की तैनाती कर दी गई। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस और साउंड ग्रेनेड का इस्तेमाल करना पड़ा। सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो में पुलिस को प्रदर्शनकारियों का पीछा करते हुए और कई स्थानों पर विस्फोट जैसी आवाजें सुनाई देती हैं।

ढाका का धनमंडी-32 इलाका, जहां बांग्लादेश के संस्थापक और हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान का घर स्थित है, पूरी तरह तनावग्रस्त रहा। प्रदर्शनकारियों ने यहां मार्च करने की कोशिश की और कुछ स्थानों पर संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की। ICT के फैसले से पहले अवामी लीग ने दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया था, जिसे हसीना ने “राजनीति से प्रेरित” बताया। लेकिन सोमवार के इस ऐतिहासिक फैसले ने देश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।

तीन आरोपों में दोषी पाई गईं शेख हसीना

78 वर्षीय शेख हसीना, जिन्हें पिछले वर्ष 5 अगस्त को बड़े पैमाने पर हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद पद से हटाया गया था, वर्तमान में दिल्ली में निर्वासन में रह रही हैं। ICT ने उन्हें तीन गंभीर आरोपों में दोषी पाया—हिंसा भड़काना, प्रदर्शनकारियों की हत्या के आदेश देना और छात्र आंदोलन के दौरान अत्याचारों को रोकने में असफल रहना।

पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान को भी मौत की सजा सुनाई गई। वहीं, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को सरकारी गवाह बनने के बाद पांच साल की सजा दी गई। फरवरी की शुरुआत में होने वाले संसदीय चुनावों से पहले आए इस फैसले ने बांग्लादेश की राजनीति में नया मोड़ जोड़ दिया है, जिसका असर आने वाले महीनों में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।

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