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सिद्धपीठ दूधेश्वरनाथ मंदिर: रावण, शिवाजी और संत परंपरा से जुड़ी अनूठी आध्यात्मिक विरासत

राजेंद्र बहादुर सिंह

राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के करीब ग़ाज़ियाबाद स्थित श्री दूधेश्वर नाथ मठ दूधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां श्री दूधेश्वर नाथ शिवलिंग का प्राकट्य सोमवार, कार्तिक शुक्ल, वैकुन्ठी चतुर्दशी संवत् 1511 वि० तदनुसार 3 नवंबर, 1454 ई० को हुआ था। इस दिव्य शिव लिंग की प्राकट्य कथा भी बड़ी अद्भुत है। कलियुग में प्राकट्य कैला गाँव श्री दूधेश्वर नाथ महादेव ज्योतिर्लिंग के निकट ही है। पुराणों में वर्णित हरनंदी (हिन्डन) आज भी पास ही बहती है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भगवान् दूधेश्वर अपने जिस भक्त पर अति प्रसन्न होते हैं, उसे स्वर्ण प्रचुर मात्रा में मिलता है। ऋषि विश्वेश्रवा और रावण को भी तो दूधेश्वर की पूजा-अर्चना से ही सोने की लंका प्राप्त हुई थी। भगवान दूधेश्वर की कृपा और मठ के सिद्ध संत-महंतों के निर्मल आशीर्वाद से लाखों लोग कष्टों से मुक्ति पा रहे हैं। यह सिलसिला त्रेता युग से आज तक निरंतर जारी है।

दूधेश्वर नाथ की महिमा एवं प्राकट्य

मान्यता है कि गांव कैला की गायों को चरवाहे टीले पर चराने के लिये लाते थे । गायों को चरने के लिये छोड़कर ग्वाले पेड़ों के नीचे विश्राम करते थे। टीले के निकट ही एक तलाब था ,उससे गायें जल पिया करतीं थी। जब गायें टीले पर एक स्थान विशेष पर पहुंचतीं तो उनके थनों से स्वतः दूध टपकने लगता था। यह बड़ी विचित्र बात थी, जिसकी ओर ग्वालों ने कभी ध्यान ही नहीं दिया था । लेकिन कभी-न-कभी तो किसी का ध्यान इस ओर जाना ही था । हुआ यूं कि जब शाम के समय गायें अपने-अपने मालिकों के घर पहुंचतीं और उनका दूध निकालने का उपक्रम किया जाता तो कई गायें बिल्कुल दूध नहीं देती थीं अथवा बहुत कम दूध देती थीं। जब किसी न किसी गाय के साथ ऐसा होता पाया गया तो चर्चा शुरू हुई । चर्चा मे सबसे पहली बात तो यही कही गयी कि यह चरवाहों की करतूत हो सकती है । गायों को घर पहुंचाने से पहले ही वे उनका दूध निकाल लेते हैं। लेकिन सभी लोग इस बात से सहमत नहीं थे। क्योंकि ज्यादातर चरवाहे पीढियों से नगरवासियों की गायें चरते आ रहे थे और कभी किसी की ऐसी शिकायत नहीं मिली थी। लगातार चर्चा के बाद यही निर्णय हुआ की हो न हो चरवाहे ही गायों का दूध निकाल कर पी जाते हैं , इसलिये उन्हें धमकाया जाये ताकि वे अपनी हरकत से बाज आयें। इस विचार के साथ ही गांव वालों ने ग्वालों को धमकाया कि ‘तुम गायों का दूध निकालकर पी जाते हो ,ऐसा करते तुम्हें शर्म नहीं आती । गाय के दूध की चोरी जैसा पाप क्यों करते हो ?’ ग्वालों ने कहा कि ‘हम कसम खा कर कहते हैं कि गायों का एक बूंद दूध भी हमने आज तक नहीं निकाला। हम पर ऐसा लांछन मत लगाओ, हम बिल्कुल निर्दाेष हैं। चरवाहे थे तो बिल्कुल निरपराध ,निर्दाेष मगर मामला उन्हें ही सुलझाना था। ग्वालों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और निर्णय किया कि सभी ग्वाले गाय चराते समय पूरी तरह से सजग व सतर्क रहेंगे। समस्त ग्वाले दिनभर चौकस रहते। पेड़ों के नीचे बैठते जरुर ,मगर सोते नहीं थे। उन्होंने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि कौन उन्हें बदनाम करने के लिये यह नीच हरकत कर रहा है। एक दिन अचानक ग्वालों ने देख की गायें इधर-उधर चरती रहीं तो कुछ नहीं हुआ लेकिन जैसे ही टीले के ऊपर एक स्थान विशेष पर पहुँची तो उनके थानों से दूध स्वतः ही टपकने लगा।

कुछेक गायों के थनों से तो बाकायदा दूध की धार ही बहने लगी । जैसे ही गायें उस स्थान विशेष से अलग हटीं उनके थनों से दूध टपकना बन्द हो गया। इस अनोखी घटना को देख सभी चरवाहे हतप्रभ रह गये । यह महान आश्चर्यजनक घटना थी। चकित ग्वालों को एक बात की तो तसल्ली हो गयी कि अब उनपर लगा दूध चोरी का लांछन हट जायेगा ।शाम को लोटकर चरवाहों ने गाँवमें गायों के मालिकों से उक्त घटना के बारे में बताया तो सभी ने उनकी इस बात को मानने से इंकार कर दिया । गाँव वालों ने ग्वालों से कहा कि ‘तुम एक झूठ को छिपाने के लिये अब दूसरा झूठ बोल रहे हो। ऐसी मनगढंत कहानी किसी और को सुनाना । हम क्या तुम्हें इतने मूर्ख दिखाई देते हैं कि तुम्हारी इस बे सिर-पैर की कहानी को सच मान लेंगे। काफी बहस के बाद तय हुआ कि अगले दिन ग्वालों के साथ गोपालक भी जायेंगे और घटना की सत्यता की स्वयं जाँच करेंगे। दूसरे दिन गायों के साथ ग्वाले व गाँव वाले भी टीले की ओर चल पड़े। टीले के पास गायों को चरने के लिये छोड़ दिया गया। गायें टीले पर इधर-उधर बिखर गयीं । ग्वालों के साथ ही उत्सुक गाँव वाले भी पेड़ों की छांव में बैठ गये। काफी देर के इंतजार के बाद गाँव वालों ने अपनी आँखों से उस चमत्कार को अपने सामने होते देखा ,जिसके बारे में चरवाहों ने उन्हें बताया था। टीले के स्थान विशेष पर पहुँची कुछ गायों के थानों से स्वतः ही दूध टपकने लगा। बाद में कुछ गायों के थानों से दूध की धार भी बहते देखी।

गाँव वालो को ग्वालों की बात पर विशवास हो गया था ,उन्होंने ग्वालों से क्षमा मांगी और उन्हें गाँव में पहुँच कर सबके सामने दोषमुक्त कर दिया। इस विचित्र चमत्कारी घटना की खबर जंगल में आग की तरह आस-पास के तमाम क्षेत्रों में फैल गई। गाँव वालों ने फैसला किया की उस स्थान की खुदाई करके इस अदभुत दैवी रहस्य से पर्दा उठाया जाये। उधर कोट नामक गाँव में उच्चकोटि के ,दसनामी जूना अखाड़े के एक जटिल सन्यासी सिद्ध महात्मा को स्वप्न मे भगवान् शिव ने दर्शन देकर इस महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने का आदेश दिया । भगवान् शंकर के आदेश का पालन करते हुए सिद्ध संत शिष्यों सहित इस पावन स्थल पर पहुँच गये। खुदाई का काम शुरू हुआ, शीघ्र ही एक जलहरी और एक दिव्य शिवलिंग द्रष्टिगोचर हुआ । गाँव वाले इस अदभुत शिवकृपा से अभिभूत थे । इस दिव्य स्थान पर जल स्रोत भी होना चाहिए कृऐसा बुजुर्गों ने विचार किया । खुदाई करने पर पास ही एक अनोखा कुआं निकला । जिसका जल कभी गंगाजल जैसा ,कभी दूध जैसा सफ़ेद तो कभी मीठा होता था। यह कुआँ आज भी सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में विधमान है।

लगभग 350 वर्ष पूर्व औरंगजेब काल में मराठा वीर शिरोमणि छत्रपति शिवाजी अपने लाव लश्कर के साथ यहाँ पधारे थे। मंदिर का जीर्णाेद्धार करवाया और यज्ञशाला भी बनवाई थी जो आज भी मौजूद है और इच्छित मनोकामना पूर्ण होने के बाद वर्तमान में धर्मपाल गर्ग जी और उनके परिवार जनो ने मंदिर का जीर्णाेद्धार करवाया है। वहीं, भगवान् दूधेश्वर लिंग के दर्शन कर छत्रपति महाराज धन्य हो गये। उन्होंने मंदिर के जीर्णाेद्धार का संकल्प लिया। शिवाजी महाराज ने यहाँ हवन भी किया था। उनके द्वारा जमीन खुदवा कर गहराई में बनवाया गया हवन-कुंड आज भी यहाँ मौजूद है। इसी हवन-कुंड के निकट वेद विद्यापीठ की स्थापना वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज ने की है, जिसमे देश के कोने-कोने से आये विद्यार्थी वेद का ज्ञान अर्जित कर रहें हैं। कहा जाता है कि औरंगजेब के कारागार से निकल भागने के बाद छत्रपति शिवाजी यहाँ आये थे और यहाँ एकांत में हवन-पूजन व भगवान् दूधेश्वर का अभिषेक करने के बाद ही मराठा सैनिक मुगलों के दांत खट्टे करने के लिये निकला करते थे । यह क्रम काफी लम्बे समय तक चला था । पण्डित गंगा भट्ट द्वारा राजतिलक किये जाने के उपरांत शिवाजी ने श्री दूधेश्वर नाथ महादेव की महिमा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र में एक गाँव बसाकर उसका नाम दूधेश्वर ग्राम रखा ,जो आज भी स्थित है । यह भी कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र प्रस्थान से पूर्व पूर्ण विधि-विधान से श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर का जीर्णाेद्धार करवाया था।

मठ-मंदिर का संचालन एवं पीठाधीश्वर नारायण गिरी का योगदान

मठ का संचालन श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से संबंध महंत परंपरा से होता है। ऐतिहासिक सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की श्रीमहंत परम्परा अति प्राचीन एवं समृद्धशाली है। इस परम्परा में ऐसे-ऐसे सिद्ध संत-महात्मा हुए हैं, जिन्होंने न केवल मंदिर के उत्थान के लिये कार्य किया बल्कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में ऐसे अभूतपूर्व कार्य किये जो आम आदमी को अचंभित कर देने वाले हैं। लगभग 560 वर्ष पूर्व ज्ञात प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से लेकर वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज तक समस्त सोलह श्रीमहंत विद्वान, सहज और मठ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखने वाले हुए हैं। नारायण गिरी जी ने अपना जीवन मंदिर के लिए समर्पित कर रखा है। पीठाधीश्वर नारायण गिरी जी का बचपन भी अद्भुत रहा जिस उम्र बचपन में लोग खेलने में निकाल देते है, उस उम्र में इन्होने सन्यास लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक पद यात्रा की। और श्री महंत जी ने जन जीवन को बहुत नज़दीक से देखा, समझा और जाना है। उन्होंने अपने पिता जी से मूल शिक्षा प्राप्त की। वहीं, साधनहीन मनुष्यों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा सुलभ कराने के उद्देश्य से श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज ने अपने गुरूजी की पावन स्मृति में ‘श्रीमहंत रामगिरी औषधालय‘ की स्थापना की। आने वाले साधुओं के विश्राम के लिये मंदिर परिसर में गौशाला के पास बरामदे में रुकने की व्यवस्था पूज्य श्रीमहंत नारायण गिरी जी ने बना रखी है। पीठाधीश्वर ने नित्य प्रति साधु-महात्माओं, अभ्यागतों के लिये अन्पूर्णा भंडार प्रातः चाय-नाश्ता, मध्यान्ह भोजन, सांयकालीन चाय-नाश्ता व रात्रि भोजन की व्यवस्था निःशुल्क मंदिर समिति की ओर से कराई है। नारायण जी ने कहा यह हमारी विरासत की छोटी सी कोशिश है जो हमारे भारतीय संतों की, महंतों की महापुरुषों की महानता को आने वाली पीढ़ियों को दिखा सके।

 

मुख्यमंत्री ने किया रुद्राभिषेक

महंत नारायण गिरी ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई मुख्यमंत्री कावड़ मेले के दौरान दूधेश्वर नाथ मंदिर में तैयारी का जायजा लिया हो। मंदिर का महंत रहते हुए मुझे 40 साल हो गए। मुख्यमंत्री ने कावड़ मेल को लेकर हो रही तमाम तैयारियां के बारे में जानकारी ली थी। मुख्यमंत्री योगी ने इस मंदिर में रुद्राभिषेक भी किया। इसके बाद कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा कर अपनी श्रद्धा निवेदित की। सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु मंदिर मंे दर्शन करने को पहुंचे है।

अब तक हुए मठ-मंदिर के महंतरू

दूधेश्वरनाथ महादेव मठ-मंदिर की श्रीमहंत परम्परा से अब तक 16 महंत हुए। इसकी शुरुआत 1511 में श्री श्री 1008 श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से शुरु हुई जो वर्तमान में श्री श्री 1008 श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज इस परंपरा को अपना जीवन समर्पित कर आगे बढ़ा रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ स्वतन्त्र पत्रकार हैं और कई समाचार पत्रों के संपादक रहे हैं।)

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