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दिल्ली में प्रदूषण पर काबू के लिए दीवाली के बाद होगा क्लाउड सीडिंग ट्रायल, सभी तैयारियां पूरी

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और स्मॉग से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश यानी ‘क्लाउड सीडिंग’ का पहला ट्रायल दीवाली के बाद होने की संभावना है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इस प्रोजेक्ट की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और अब केवल भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की मंजूरी का इंतजार है।

सिरसा ने कहा, “विमानों में क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी उपकरण लगाए जा चुके हैं, पायलट ट्रायल उड़ानें पूरी कर चुके हैं और वे संबंधित क्षेत्रों से भलीभांति परिचित हैं। अब बस मौसम की अनुकूल परिस्थितियों और IMD की हरी झंडी का इंतजार है।” उन्होंने बताया कि यह ट्रायल दीवाली के अगले दिन या उसके कुछ समय बाद शुरू हो सकता है, हालांकि सटीक तारीख अभी तय नहीं की गई है।यह प्रोजेक्ट, जो दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार की एक बड़ी पहल है, पहले कई बार टल चुका है। शुरुआत में इसे जुलाई में शुरू करने की योजना थी, लेकिन मॉनसून, बदलते मौसम और उपयुक्त बादलों की कमी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। अब यह तय हुआ है कि परीक्षण दीवाली के बाद किया जाएगा।

दिल्ली सरकार ने इस परियोजना के लिए IIT कानपुर के साथ साझेदारी की है। उद्देश्य यह जांचना है कि क्या कृत्रिम बारिश सर्दियों के दौरान बढ़ते प्रदूषण और स्मॉग को कम करने में मदद कर सकती है। इसके लिए सरकार ने पिछले महीने IIT कानपुर के साथ पांच क्लाउड सीडिंग ट्रायल करने का समझौता (MoU) किया था। ये ट्रायल उत्तर-पश्चिम दिल्ली के विभिन्न इलाकों में किए जाएंगे।इस प्रोजेक्ट को DGCA समेत 23 विभागों से मंजूरी मिल चुकी है और IIT कानपुर को फंड भी ट्रांसफर कर दिए गए हैं। IIT कानपुर का एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग इस परियोजना का नेतृत्व कर रहा है और इसके लिए संस्थान का स्वयं का विमान ‘सेसना 206-H (VT-IIT)’ इस्तेमाल किया जाएगा।

क्लाउड सीडिंग तकनीक में बादलों में रासायनिक तत्व छोड़े जाते हैं, जिससे कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है। यह प्रयोग भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पुणे और IMD के विशेषज्ञों के सहयोग से किया जाएगा। DGCA ने इस गतिविधि को 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच संचालित करने की अनुमति दी है, जिसमें सुरक्षा और हवाई यातायात नियंत्रण के सभी दिशानिर्देशों का पालन अनिवार्य होगा।
दिल्ली के लोगों को इस ट्रायल से बड़ी उम्मीदें हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो यह राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।

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