सराहनीय है, ब्रजेश पाठक की पुस्तक “अतुलनीय अटल जी”

समीक्षक
अशोक कुमार मिश्र
जिसकी तुलना किसी से न की जा सके, वह अतुलनीय होता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी अतुलनीय थे। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक जी ने उन पर जो पुस्तक “अतुलनीय अटल जी” लिखी है, वह भी अतुलनीय है।
96 पेज की पुस्तक “अतुलनीय अटल जी” (व्यक्तित्व विचार व विरासत) श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित की गई है। इसमें “अतुलनीय अटलजी प्रेरक जीवन दर्शन” सहित कई संग्रहणीय लेख है, जिसमे भारतीय राष्ट्र का मूल स्वरूप, भारतीय भाषाओं व हिन्दी का सशक्तिकरण, भारत का भारतीयकरण आवश्यक, लाल किले की प्राचीर से पहला संबोधन, जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में प्रथम उद्बोधन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में दिया संभाषण प्रमुख है। इसमें आओ फिर से दिया जलाएँ, इतनी ऊँचाई कभी मत देना, टूट सकते हैं मगर झुक नहीं सकते, जीवन बीत चला, आओ मन की गाँठें खोलें, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए, मन का चैन उड़ा देते हैं, जो हम पर गुजरी, मस्तक नहीं झुकेगा, स्वतंत्रता दिवस की पुकार व फिर यह कैसा बन्धन है सहित कई कविताएं भी है।
इसमें उल्लेख किया गया है कि माँ सरस्वती की असीम कृपा से कविवर अटल बिहारी वाजपेयी जी जन्मजात रचनाधर्मी थे। उनकी कविताओं में महाकवि तुलसी सी प्रतिभा, कबीर जैसी दार्शनिकता, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सरीखी अर्न्तचेतना, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ सदृश्य तेजस्विता और सुमित्रा नन्दन पंत के समान भावप्रवणता प्रतिबिम्बित होती है। उनकी कविताओं में दर्शन, समाज की सच्चाई, दुनियाँ-जहाँ का दर्द और मानवता से जुड़ी हुयी समस्यायें एवं उनका समाधान मिलता है। अटल जी ने अपनी कालजयी रचनाओं से हिन्दी साहित्य को गुणात्मक रूप से काफी समृद्ध किया है। उनकी रचनायें अनन्त काल तक लोगों को प्रेरित एवं स्पन्दित करती रहेंगी और जीवन जीने के तौर तरीके सिखाती रहेंगी। अटलजी विराट भारत की उदार आत्मा के महान कवि के रूप में सदैव याद किए जायेंगे।
पहला विषय “अतुलनीय अटल जी प्रेरक जीवन दर्शन” 34 पन्नों में है। इसमें उनके बारे में विस्तार से लिखते हुए बताया गया है कि लालकृष्ण आडवाणी जी और डॉ मुरली मनोहर जोशी जी जैसे दिग्गजों के साथ उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकलकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया। अटल जी कहते थे कि सरकारी आएंगी- जाएंगी, पार्टियां बनेगी- बिगड़ेगी, मगर यह देश रहना चाहिए। भारतीय राष्ट्र का मूल स्वरूप राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक है। सांस्कृतिक एकता की अनुभूति राजनीतिक एकता के पक्ष की प्रेरक शक्ति रही है। राजनीतिक एकता के अभाव ने देश की सांस्कृतिक धारा को कभी खण्डित नहीं होने दिया। विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है।
पुस्तक के बैक पेज पर अटल जी की विभिन्न मुद्राओं में चित्र के साथ उनकी जयंती 25 दिसंबर 1924, अष्टमी शुक्ल पक्ष मार्गशीर्ष विक्रम संवत 1981 तथा महाप्रयाण 16 अगस्त 2018 त्रयोदशी कृष्ण पक्ष श्रवण विक्रम संवत 2075 अंकित है।