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बिहार में लोकतंत्र की नई जंग: नीतीश बनाम तेजस्वी, इमरजेंसी के सिपाही से नई पीढ़ी के नेता तक की सियासी टक्कर

बिहार की सियासत एक बार फिर गरमाने लगी है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य की राजनीति दो प्रमुख चेहरों के इर्द-गिर्द घूम रही है—एक ओर हैं अनुभवी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तो दूसरी ओर हैं आरजेडी के युवा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव। यह मुकाबला सिर्फ दो नेताओं के बीच नहीं, बल्कि दो पीढ़ियों और दो राजनीतिक विचारधाराओं की टक्कर बनता जा रहा है।

बिहार का विपक्ष हमेशा से देशभर में अपनी अलग पहचान रखता रहा है। जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था, तब लोकतंत्र को बचाने के लिए जिस गिने-चुने विपक्षी नेताओं ने आवाज उठाई, उनमें बिहार के जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे नाम प्रमुख रहे। इन्होंने न सिर्फ इमरजेंसी का विरोध किया, बल्कि देश में विपक्ष को जीवित रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।

इन नेताओं की विरासत अब एक नई सदी के युवाओं के सामने है। लालू यादव, जो एक दौर में बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा थे, अब स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से दूर हैं। उनकी जगह अब उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने संभाली है, जो न सिर्फ युवा वर्ग में लोकप्रिय हैं बल्कि सत्ता पक्ष से तीखे सवाल पूछने के लिए भी जाने जाते हैं।

तेजस्वी, एक आक्रामक विपक्ष के रूप में उभरे हैं। विधानसभा में उनके भाषणों से लेकर सोशल मीडिया तक, वे नीतीश कुमार सरकार की नीतियों और फैसलों पर लगातार सवाल उठाते नजर आते हैं। हाल के दिनों में, बिहार विधानसभा में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर हुए भारी हंगामे में तेजस्वी ने नीतीश पर सीधे-सीधे जवाबदेही तय करने की कोशिश की, जिस पर नीतीश भी सख्त लहजे में जवाब देने को मजबूर हो गए।

नीतीश कुमार, जो कई दशकों से बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं, अब एक चुनौतीपूर्ण दौर में हैं। एनडीए गठबंधन में बार-बार की उठापटक, विपक्ष के हमले और जन अपेक्षाओं का दबाव, ये सभी फैक्टर उनके लिए आगामी चुनाव में निर्णायक साबित हो सकते हैं। बिहार की राजनीति हमेशा से परिवर्तनशील रही है, जहां एक वक्त में सामाजिक न्याय की बात करने वाले नेता सत्ता में आए और फिर विकास की राजनीति ने अपनी जगह बनाई। अब एक बार फिर सियासत एक मोड़ पर है—जहां एक ओर अनुभव और स्थिरता है, वहीं दूसरी ओर युवा जोश और बदलाव की चाहत।

अगले विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नीतीश कुमार एक बार फिर अपने अनुभव और प्रशासनिक रिकॉर्ड के दम पर जनता को साध पाएंगे, या तेजस्वी यादव अपनी राजनीतिक विरासत और युवाओं के भरोसे बिहार की सत्ता तक पहुंचेंगे। लोकतंत्र की इस नई जंग में बिहार की जनता निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है।

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