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7/11 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 दोषियों को किया बरी, कहा—अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में असफल

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में वर्ष 2006 में हुए दिल दहला देने वाले 7/11 लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा कि आरोपियों के खिलाफ मामला “संदेह से परे” है।

क्या हुआ था 7/11 को?

11 जुलाई 2006 को मुंबई की भीड़भरी लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के भीतर सात सिलसिलेवार धमाके हुए थे। ये धमाके पश्चिमी रेलवे की ट्रेनों में अलग-अलग स्टेशनों के बीच हुए, जिसमें 189 लोगों की जान चली गई और 827 लोग घायल हो गए थे। यह घटना देश की सबसे भीषण आतंकी वारदातों में से एक मानी जाती है।

जांच और अब तक की कानूनी प्रक्रिया

इस मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की और कुल 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि 15 आरोपी अभी भी फरार बताए गए—जिनमें से कुछ के पाकिस्तान में होने की आशंका जताई गई थी।

साल 2015 में विशेष अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था। इनमें से पांच को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। सरकार ने पांच आरोपियों की फांसी की सजा की पुष्टि के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, वहीं सभी दोषियों ने अपने खिलाफ आई सजा को चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट ने क्यों किया बरी?

न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चंदक की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में नाकाम रहा। अदालत के अनुसार, “गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास थे और वे अविश्वसनीय पाए गए।”

कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर भी सवाल उठाए कि धमाके के करीब 100 दिन बाद टैक्सी ड्राइवरों और अन्य गवाहों द्वारा पहचान किए जाने का कोई ठोस आधार नहीं था।

जहां तक बम, नक्शे, हथियार आदि सबूतों की बात है, पीठ ने कहा, “इनकी बरामदगी उस समय कोई मायने नहीं रखती जब अभियोजन पक्ष यह भी नहीं साबित कर पाया कि धमाकों में किस तरह के बम का इस्तेमाल हुआ था।”

क्या हुआ सुनवाई के दौरान?

इस मामले की हाई कोर्ट में सुनवाई जुलाई 2024 से शुरू होकर छह महीने तक चली। बचाव पक्ष के वकीलों ने दलील दी कि पूछताछ के दौरान महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) लगाए जाने के बाद आरोपियों से जबरन कबूलनामे करवाए गए।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पुलिस द्वारा रिकॉर्ड किए गए ये कबूलनामे अवैध तरीके से लिए गए और इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, बचाव पक्ष ने मुंबई क्राइम ब्रांच की उस जांच का भी हवाला दिया जिसमें इंडियन मुजाहिद्दीन (IM) की संलिप्तता की बात सामने आई थी और IM सदस्य सादिक के कबूलनामे को भी अदालत में पेश किया गया।

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