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बिहार में बढ़ता अपराध और राजनीतिक चुप्पी: चुनाव से पहले चिंताजनक हालात

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही राज्य की सियासी हलचल तेज हो गई है। हर राजनीतिक दल जाति और धर्म के समीकरण साधने में जुटा है। लेकिन इसी बीच एक गंभीर सवाल लगातार उठ रहा है—बिहार की बिगड़ती कानून-व्यवस्था।

पिछले एक महीने में राज्य में हत्याओं और अन्य गंभीर अपराधों की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। पुलिस प्रशासन और सरकार की निष्क्रियता ने आम जनता के मन में असुरक्षा की भावना भर दी है। न तो कोई ठोस कार्रवाई दिख रही है और न ही कोई जिम्मेदार चेहरा सामने आ रहा है, जो इन घटनाओं पर रोक लगाने की बात करे।

कभी “सुसाशन बाबू” कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पहले कानून-व्यवस्था को लेकर मुखर रहते थे, अब इन अपराधों पर खामोश नजर आ रहे हैं। जिस जंगलराज के खिलाफ उन्होंने आरजेडी और अन्य दलों को घेरा था, वही हालात अब उनके कार्यकाल में उभरते दिख रहे हैं। यह न सिर्फ चिंताजनक है बल्कि सत्ता की जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है। यह संकेत है कि राजनीतिक फोकस अब विकास या कानून-व्यवस्था से हटकर केवल चुनावी समीकरणों तक सिमट गया है। बिहार को आज एक मजबूत नेतृत्व और ठोस नीति की जरूरत है, ताकि अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके और राज्य को विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके। पलायन की बढ़ती समस्या बताती है कि यहां के युवाओं को रोजगार और सुरक्षित माहौल की सख्त जरूरत है। बिहार को अपराध की पहचान से हटाकर औद्योगिक और शैक्षिक केंद्र बनाना अब समय की मांग है।

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