यमन में निमिषा प्रिया को फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट से बोले अटॉर्नी जनरल, भारत कुछ खास नहीं कर सकता

नई दिल्ली। केरल की रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया को यमन की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है, जिसकी तारीख अब दो दिन दूर है। भारत सरकार ने उनकी सजा रुकवाने के लिए हरसंभव प्रयास किया, लेकिन फिलहाल कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि उसने इस मामले में जितना संभव था, उतनी कोशिश की। सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमणी ने कहा कि यह एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मामला है, लेकिन अब भारत के पास कुछ खास विकल्प नहीं बचे हैं।
फांसी रुकवाने का एकमात्र रास्ता : ब्लड मनी
अदालत को जानकारी दी गई कि यदि मृतक के परिजन क्षतिपूर्ति (ब्लड मनी) स्वीकार कर लें, तो निमिषा की फांसी रोकी जा सकती है। भारत ने मृतक के परिवार को लगभग 1 मिलियन डॉलर (करीब 8.5 करोड़ रुपये) का मुआवजा देने की पेशकश की थी, लेकिन परिवार ने इसे ठुकरा दिया।
सरकार की सीमाएं भी होती हैं : अटॉर्नी जनरल
सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के सामने केंद्र सरकार ने कहा कि उसने कूटनीतिक और कानूनी हर स्तर पर प्रयास किया, लेकिन हर कोशिश की एक सीमा होती है। अब यदि ब्लड मनी स्वीकार नहीं की जाती है, तो सरकार की भूमिका सीमित रह जाती है।
कौन हैं निमिषा प्रिया?
निमिषा प्रिया 2008 में केरल के पलक्कड़ जिले से नर्स की नौकरी के लिए यमन गई थीं। 2011 में उन्होंने भारत लौटकर ऑटो ड्राइवर टॉमी थॉमसन से शादी की और फिर पति के साथ यमन चली गईं। 2012 में उनकी एक बेटी हुई। इसके कुछ समय बाद यमन में हालात बिगड़ने लगे। उनके पति बेटी को लेकर भारत लौट आए, जबकि निमिषा यमन में रहकर काम करती रहीं।