बीजेपी में अनुभव”राज” की वापसी ??

विवेक तिवारी
2024 लोकसभा चुनावों के बाद,से बीजेपी में संगठनात्मक पुनर्संरचना की प्रक्रिया चल रही है। वैसे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा का कार्यकाल 2023 में ही खत्म हो चुका है,जून 2024 तक लोकसभा चुनाव के कारण वे एक्सटेंशन पर थे और नए अध्यक्ष के चुनाव तक अंतरिम तौर पर कार्यभार संभाल रहे। उनके बाद ये कमान किसके पास जाएगी ये लाख टके का सवाल है। चर्चा गरम है कि वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यदि यह अनुमान सही सिद्ध होता है, तो यह न केवल एक संगठनात्मक निर्णय होगा, बल्कि भाजपा की आगामी रणनीति की दिशा भी तय करेगा।
चर्चा का आधार क्या है?
2024 के चुनावों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में उसे सहयोगी दलों पर अधिक निर्भर रहना पड़ा है। ऐसे में एक सर्वमान्य, संयमित और स्वीकार्य चेहरे की आवश्यकता संगठन और सहयोगियों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए अहम हो जाती है।अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे नेताओं के साथ भाजपा नेतृत्व में एक ऐसा चेहरा जरूरी माना जा रहा है जो संघ, संगठन और सरकार तीनों के साथ सामंजस्य बनाए रख सके।
संघ का भरोसेमंद चेहरा:
राजनाथ सिंह की छवि एक संघ-समर्पित, सुलझे हुए और सभी धड़ों में स्वीकार्य नेता की रही है। संघ और संगठन दोनों के लिए वे एक भरोसेमंद विकल्प है।
आगे बढ़े इससे पूर्व राजनाथ सिंह की राजनीतिक यात्रा:
जन्म: 10 जुलाई 1951, चंदौली, उत्तर प्रदेश
राजनीति में प्रवेश: 1970 में ABVP के माध्यम से छात्र राजनीति से शुरुआत
मुख्य पड़ाव:
1991: उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री
1999: केंद्र में कृषि मंत्री
2000-2002: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
2005-2009: पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
2013-2014: दोबारा अध्यक्ष और 2014 के चुनाव में निर्णायक भूमिका
2014-19: केंद्रीय गृह मंत्री
2019-वर्तमान: रक्षा मंत्री
उनकी छवि एक मर्यादित वक्ता, संघप्रिय नेता, और कुशल संगठनकर्ता की रही है।
यदि अध्यक्ष बने तो भाजपा पर प्रभाव:
संघ-संगठन में समन्वय:
राजनाथ की वापसी से भाजपा नेतृत्व और RSS में विचारधारात्मक और कार्यपद्धति का समन्वय बेहतर होगा। वे मोदी सरकार और संघ के बीच एक मध्यमार्गी पुल का काम कर सकते हैं।
नई पीढ़ी को मार्गदर्शन:
जेपी नड्डा के बाद संगठन को एक अनुभवी मार्गदर्शक की आवश्यकता है, जो राजनीतिक संतुलन बनाए रखे। राजनाथ इस भूमिका में सहज रूप से फिट बैठते हैं।
गठबंधन राजनीति को मजबूती:
सहयोगी दलों के साथ विनम्र और सम्मानजनक संवाद स्थापित करना भाजपा के लिए अब अनिवार्य हो चुका है। राजनाथ की संवाद-शैली इसमें सकारात्मक योगदान दे सकती है।
इससे पहले भी राजनाथ सिंह कई नाज़ुक और अहम मौकों पर पार्टी के काम आये हैं।
राजनाथ सिंह: संकट के समय पार्टी के सारथी
राजनाथ सिंह न सिर्फ एक संगठनात्मक नेता रहे हैं, बल्कि कई बार भाजपा जब विचारधारात्मक या रणनीतिक संकट में रही, तब उन्होंने पार्टी को स्थिरता और दिशा दी। उनके कुछ महत्वपूर्ण ‘संकटमोचक’ योगदान इस प्रकार हैं:
2005 – पार्टी का कठिन दौर और अध्यक्ष पद की कमान
2004 लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा आंतरिक मतभेदों, वैचारिक असमंजस और नेतृत्व संकट से गुजर रही थी। अटल-आडवाणी युग के अंत की आहट स्पष्ट थी। उस समय राजनाथ सिंह को भाजपा अध्यक्ष बनाकर संगठन को एकजुट रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने “पार्टी विद डिफरेंस” की मूल आत्मा को फिर से स्थापित करने की कोशिश की और संघ व पार्टी में संवाद की कड़ी बनाए रखी।
2013 – नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की ऐतिहासिक पहल।
2013 में जब पार्टी के भीतर नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर गंभीर मतभेद थे—वरिष्ठ नेताओं जैसे आडवाणी की असहमति और संघ के दबाव के बीच—तब राजनाथ सिंह ने अध्यक्ष के रूप में निर्णयात्मक नेतृत्व दिखाया। उन्होंने साहसिक ढंग से मोदी को आगे बढ़ाया और पार्टी को निर्णायक रणनीति की ओर मोड़ा। यही निर्णय 2014 में भाजपा की ऐतिहासिक विजय का आधार बना।
उत्तर प्रदेश में 2001–2002: कुर्सी और दल को बचाने का प्रयास।
राजनाथ सिंह ने 2000 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला, तब भाजपा सरकार विवाद, अंदरूनी कलह और जातीय असंतुलन से जूझ रही थी। उन्होंने अपने सीमित कार्यकाल में पार्टी को कानून-व्यवस्था और किसान केंद्रित राजनीति की ओर मोड़ा और कम से कम प्रशासनिक छवि को गिरने से रोका। भले ही उनके बाद पार्टी चुनाव हार गई, लेकिन उनका कार्यकाल बेहतर माना गया था। विशेषकर जातीय राजनीति में पिछड़ती जा रही बीजेपी के लिए वो एक नई सोच लेकर आये ।अति पिछड़ों और अति दलितों की राजनीति की शुरुआत बीजेपी के भीतर दरअसल इसी कालखंड में शुरू हुई जो आज बीजेपी की मौजूदा सियासत की आज धुरी है।
गठबंधन युग में संतुलन का चेहरा :
2019 के बाद जब भाजपा को एनडीए की राजनीति में सहयोगियों के साथ बेहतर सामंजस्य की ज़रूरत थी, तब राजनाथ सिंह ने कई बार मध्यस्थ की भूमिका निभाई—चाहे वह नीतीश कुमार हों, अकाली दल या अन्य छोटे दल। वे समाधान के राजनेता माने जाते हैं।
राजनाथ सिंह का भाजपा अध्यक्ष बनना केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं होगा, बल्कि यह उस नेता की वापसी होगी जिसने हर कठिन समय में पार्टी को वैचारिक और रणनीतिक दिशा दी। जब-जब भाजपा डगमगाई, राजनाथ सिंह जैसे स्थिर और संतुलित नेतृत्व ने उसे संभाला। इस बार अगर वे फिर से अध्यक्ष बनते हैं, तो यह भाजपा में अनुभव, संतुलन और संवाद की वापसी के रूप में देखा जाएगा। बड़ी बात यह भी कि आज के दौर जब बीजेपी के कई नेताओं पर हिंदुत्व के प्रति कट्टर रुख रखने की चर्चा होती है,राजनाथ सिंह ऐसे नेता हैं जो भाजपा और संघ की विचारधारा के प्रति पूर्ण समर्पित होने के बावजूद अपनी संतुलित छवि बनाये हुए हैं जैसे किसी दौर में स्वर्गीय अटल जी की थी। उनका अध्यक्ष बनाया जाना बीजेपी की छवि को भी कुछ न कुछ ज़रूर और निखार देगा।