उत्तर प्रदेश

लखनऊ में आईना की कार्यशाला संपन्न, पत्रकारिता क्षेत्र में महिलाओं के सार्थक योगदान पर हुई चर्चा

लखनऊ। डिजिटल युग मे सृष्टि के निर्माण में अपनी अहम भूमिका रखने वाली महिलाओं को पत्रकरिता क्षेत्र की चुनौतियां को नजर अंदाज करके समाज को आईना दिखाती पत्रकारिता क्षेत्र में आगे लाने के लिए ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसियेशन, आईना द्वारा कुछ वर्ष पहले किये गये प्रयास को देखते हुये आज बड़ी संख्या में महिलाएं आईना से जुड़ कर मीडिया क्षेत्र में आगे आ रही हैं।

मीडिया क्षेत्र में भी महिलाओं के लिए चुनौतियां हमेशा से रहीं हैं और वर्तमान परिवेश मे महिलाओं ने इनका सामना कर अपना एक अलग मुकाम बनाया है। आज से कुछ वर्ष पहले तक मीडिया में अँगुलियों पर गिनी जाने वाली महिलाएँ थीं। लेकिन आज स्थिति भिन्न है। आज मीडिया-जगत का ऐसा कोई कोना नहीं जहाँ महिलाएँ आत्मविश्वास और दक्षता से मोर्चा संभाल रही हैं। हिंदुस्तान अखबार की सीनियर संपादक सुनीता ऐरन ने इस मौके पर बताया कि विगत वर्षो में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट पत्रकारिता की दुनिया में महिला स्वर प्रखरता से उभरें हैं।

पत्रकारिता क्षेत्र में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती रिपोर्टिंग के साथ-साथ अपने घर परिवार को संभालने की भी रहती है और संभवत इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए महिलाओं द्वारा पत्रकारिता से दूरी बनाई गई है लेकिन समाज को सही मायने में आईना दिखाने का काम और किसी भी खबर में संवेदना के साथ सामंजस्य बनाकर जिस तरह महिलाओं द्वारा कार्य किया जा रहा है उससे महिलाओं ने मीडिया क्षेत्र में एक बडी पहचान बनाई है।

आईना द्वारा आयोजित कार्यशाला में डॉ अनिता सहगल ने कहां कि पत्रकारिता के लिए जिस वांछित संवेदनशीलता की जरुरत होती है वह महिलाओं में नैसर्गिक रूप से पाई जाती है। पत्रकारिता में एक विशिष्ट किस्म की संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है और समानान्तर रूप से कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करने की भी। संवाद और संवेदना के सुनियोजित सम्मिश्रण का नाम ही सुन्दर पत्रकारिता है। महिलाओं में संवाद के स्तर पर स्वयं को अभिव्यक्त करने का गुण भी पुरुषों की तुलना में अधिक बेहतर होता है। यही वजह रही है कि मीडिया में महिलाओं का गरिमामयी वर्चस्व बढ़ा है।

संवेदना के स्तर पर जब तक वंचितों की आह, पुकार और जरुरत एक पत्रकार को विचलित नहीं करती उसकी लेखनी में गहनता नहीं आ सकती। लेकिन महज संवेदनशील होकर पत्रकारिता नहीं की जा सकती क्योंकि इससे भी अधिक अहम है उस आह या पुकार को दृढ़तापूर्वक एक मंच प्रदान करना यहाँ जिस सुयोग्य संतुलन की आवश्यकता है वह भी निःसंदेह महिलाओं में निहित है। अपवाद संभव है, लेकिन मोटे तौर पर यह एक सच है जिसे वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं।

आईना राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय वर्मा ने संबोधित करते हुए बताया कि पत्रकार की तीसरी महत्वपूर्ण योग्यता गहन अवलोकन क्षमता और पैनी दृष्टि कही जाती है। यहाँ भी महिलाओं का पलड़ा भारी है। जिस बारीकी से वह बाल की खाल निकाल सकती हैं वह सिर्फ उन्हीं के बस की बात है।

पिछले कुछ सालों में मीडिया में महिलाओं ने एक और भ्रम को सिरे से नकार दिया है। या यूं कहें कि लगभग चटका दिया है, उनका कहना है कि पत्रकार होने के लिए यह कतई जरूरी नहीं कि लड़को जैसी भेस भूषा बनाई जाएँ। या बस रूखी-सूखी लड़कियाँ ही पत्रकार हो सकती हैं। अपने नारीत्व का सम्मान करते हुए और शालीनता कायम रखते हुए भी सशक्त पत्रकारिता की जा सकती है । यह सच भी इसी दौर की पत्रकारिता में दिखाई दिया है।

मीडिया में आपसे पहले आपकी प्रतिभा और दक्षता खुद बोलती है। यहाँ छल, छद्म, झूठ और मक्कारी आपको ले डूबते हैं। मैं मानता हूँ कि महिलाओं के लिए यह सुरक्षित क्षेत्र है बस इसे सम्मानजनक बनाए रखना की जिम्मेदारी भी मीडिया की ही है। अच्छा कंटेंट, स्टोरी महिलाओं की वास्तविक तस्वीर पेश कर सकती है। उन्होने कहा कि रिपोर्टिंग करते हुए देखा कि ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर हर जगह खेत खलिहान में काम करती हैं बल्कि वो उनसे ज्यादा काम करती हैं मगर उन्हें कभी महिला किसान का दर्जा नहीं मिलता है।

पत्रकारिता और संचार शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर अपने विचार रखते हुए रेनु निगम ने कहा कि हम मीडिया शिक्षा और नारी की बात करें तो इन्हे इन दो शब्दों संवाद और संवेदना से जोड़ कर देख सकते हैं। और इन दोनो का जिसने सामंजस्य बिठा लिया वो अपने क्षेत्र में सफल हुआ है। महिलाएं हर क्षेत्र में अपना दायित्व अच्छे से निभाती हैं। मीडिया की बात करें तो इस क्षेत्र में यदि कोई बच्ची आती है तो वो ये सोच कर आती है कि वो हर चुनौती के लिए तैयार है।

वक्तव्यों की कड़ी में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार सादिया हसन ने कहा कि हमे तो अपनी चुनौतियों को महसूस करने का भी समय नहीं मिला। मीडिया में अपने आप को साबित करने के साथ ही अवांछनीय व्यवहार से बचने की भी चुनौती रहती है। मीडिया में लड़कियों का रहना जरूरी है क्यों कि वो ज्यादा संवेदनशील होती हैं और मुद्दो को संवेदना के साथ पेश करती हैं।

कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए परमजीत ने कहा कि लैंगिक असमानता जैसे विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के तमाम संगठन कार्यरत हैं लेकिन पुरुष प्रधान की मानसिकता के चलते महिलाओं को आज भी उन संगठनो में महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जाता है । वहीं आईना संगठन के माध्यम से गुरमीत कौर द्वारा महिला पत्रकारों को प्रोत्साहित करने का हमेशा प्रयास किया जा रहा है। बदलते भारत के बदलते स्वरूप में न्यू मीडिया के क्षेत्र में आईना दिखाती पत्रकारिता का स्वर्णिम युग अभी आना बाकी है जो महिलाओं की भागीदारी के बिना संभव नही होगा और आईना प्रदेश अक्ष्यक्षा के सतत प्रयासों से सम्भव है कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का स्वर्णिम युग जल्दी देखने को मिलेगा।

महिलाओं की समाज और मीडिया में भागीदारी के सुनिश्चिती करण को लेकर हुई कार्यशाला में हिंदुस्तान की सीनियर संपादक सुनीता ऐरन, राष्ट्रीय उद्घोषिका डॉ अनीता सहगल वसुंधरा, समाजसेवी मधु चंद्र बनर्जी, डॉक्टर शैली महाजन, मंजूलिका अस्थान, डॉक्टर रुबी राज सिंहा, वरिष्ठ पत्रकार नाइला किदवई, समाजसेवी खुशी पांडे, शिखा सिंह, डॉ दिव्या गांधी सविता साहू डॉक्टर निदा फातिमा सेफ नंदिनी मोतियानी डॉ वंदना मनी मिश्रा सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी समाजसेवी महिलाओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किया।

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