वाराणसी का एक ऐसा मंदिर जहां ना आरती होती है और ना ही घंटी बजती है
बनारस की पहचान यहां के घाट और मंदिरों की वजह से है। काशी विश्वनाथ समेत यहां कई ऐसे मंदिर हैं। जो किसी ना किसी कारण से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, ऐसा ही बनारस में एक मंदिर में है, जो भव्य आरती के लिए नहीं, बल्कि आरती ना होने की वजह से विख्यात है। यहां ना तो पूजा होती है और ना ही घंटी बजती है।
वजह यह मंदिर लगभग 6 माह तक पानी में डूबा होता है ,कहा जाता है कि यह मंदिर 300 साल पुराना है और यह मंदिर पीसा की मीनार की तरह झुका हुआ है। आप देखकर ही पता लगा सकते हैं कि मंदिर कितना झुका हुआ है। यह मंदिर सैकड़ों साल से एक तरफ 9 डिग्री झुका हुआ है। कई बार तो गंगा का स्तर थोड़ा ज्यादा हो जाता है तो पानी इसके शिखर तक पहुंच जाता है। मंदिर में मिट्टी जमा हो जाती है और कई सालों से पानी की मार झेल रहा मंदिर अभी भी वैसे ही खड़ा है और झुका हुआ है. मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं,इस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर इतना झुका होने के बाद और कई महीनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी वैसे ही खड़ा है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी एक दासी रत्ना बाई ने मणिकर्णिका घाट के सामने शिव मंदिर बनवाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से पैसे उधार लिए थे। अहिल्या बाई मंदिर देख प्रसन्न थीं, लेकिन उन्होंने रत्ना बाई से कहा था कि वह इस मंदिर को अपना नाम न दे, लेकिन दासी ने उनकी बात नहीं मानी और मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएगी, वहीं कई लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी ने अपनी मां के ऋण से उऋण होने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन यह मंदिर टेढ़ा हो गया। ऐसे में कहा गया कि मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है।