क्यों जल रहा है उत्तराखंड ? आखिर क्यों लगती है जंगलों में आग ?
ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ ही जंगलों में आग लगने की घटना में भी तेजी से इजाफा होने लगा है। उत्तराखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, हिमाचल सहित अनेक राज्यों में इन दिनों भीषण अग्निकांड हुए जिनमें करोड़ों अरबों की वन संपदा जंगलों में लगी आग से खाक हो गई है।
पेड़ पौधों के साथ जंगली जानवर मौत के शिकार हुए वहीं भूमि भी बंजर हो गयी। इन दिनों उत्तराखंड जंगलों में लगी आग से धधक रहा है। ऐसा पहली बार नहीं है जब प्रदेश के जंगल आग से खाक हो रहे हैं। हर बार गर्मी के दिनों में उत्तराखंड के जंगलों में अक्सर आग लग जाती है, और जिससे वनसंपदा और जानमाल का नुकसान होता है। उत्तराखंड में अप्रैल से ही उछाल भरते पारे ने आमजन की मुसीबत तो बढ़ा ही दी है, वन संपदा के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। तापमान बढ़ने के साथ ही राज्य में जंगल धधकने लगे हैं। इससे वन विभाग के अधिकारियों की पेशानी पर बल पड़े हैं।
उत्तराखंड में रविवार 3 अप्रैल को 12 घंटे में आठ स्थानों पर जंगल में आग लगी। गढ़वाल में सात और कुमाऊं में एक जगह जंगल में आग लगी। इस दौरान करीब पौने पांच हेक्टेयर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। जबकि दस हजार रुपये से अधिक की आर्थिक क्षति का आंकलन किया गया है। कुल आठ घटनाओं में 4.75 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।
मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा के मुताबिक इस फायर सीजन में वनाग्नि की अब तक 167 घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि 214 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। जंगल में आग की इन घटनाओं के बाद अब तक करीब छह लाख रुपये के नुकसान का आकलन किया गया है। उन्होंने बताया कि जंगलों को आग से बचाए रखने में ग्रामीणों और राहगीरों की भूमिका अहम है। इस दौरान यदि किसी को भी जंगल में कहीं आग लगी दिखाई देती है, तो संबंधित रेंज कार्यालय, डीएफओ कार्यालय या आपदा कंट्रोल रूम को तत्काल इसकी सूचना दें। ताकि वक्त रहते जंगल की आग पर काबू पाया जा सके।
वन विभाग के मुताबिक, उत्तरकाशी जिले में अबतक करीब 20 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। पहले तो फायर सीजन यानी 15 फरवरी से मानसून आने के समय तक ही जंगल अधिक सुलगते थे, लेकिन अब यह अवधारणा टूटी है। साल 2020 में सर्दियों में ही जंगल धधक उठे थे। इसे देखते हुए तब सरकार ने पूरे वर्ष को फायर सीजन के रूप में घोषित कर दिया था। पिछले वर्ष सर्दियों में लगातार बारिश व बर्फबारी होने के कारण स्थिति नियंत्रण में रही, लेकिन अब जबकि मौसम के शुष्क होने के साथ ही पारा उछाल भरने लगा है तो इसी अनुपात में जंगल भी सुलगने लगे हैं।
आखिर क्यों लगती है जंगलों में आग
जंगल में आग लगने के मुख्य तीन कारण होते हैं। ईंधन, ऑक्सीजन और गर्मी। अगर गर्मियों का मौसम है, तो सूखा पड़ने पर ट्रेन के पहिए से निकली एक चिंगारी भी आग लगा सकती है। इसके अलावा कभी-कभी आग प्राकृतिक रूप से भी लग जाती है। ये आग ज्यादा गर्मी की वजह से या फिर बिजली कड़कने से लगती है. वैस जंगलों में आग लगने की ज्यादातर घटनाएं इंसानों के कारण होती हैं, जैसे आगजनी, कैम्पफ़ायर, बिना बुझी सिगरेट फेंकना, जलता हुआ कचरा छोड़ना, माचिस या ज्वलनशील चीजों से खेलना आदि। जंगलों में आग लगने के मुख्य कारण बारिश का कम होना, सूखे की स्थिति, गर्म हवा, ज्यादा तापमान भी हो सकते हैं. इन सभी कारणों से जंगलों में आग लग सकती है।
जंगल में लगी आग पर काबू कैसे पाएं
जंगल को आग से बचाकर रखने से हमारा पूरा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। इसलिए इन बातों का विशेष रूप से ध्य़ान दें। जंगल में आग लगने पर एक विशेष टूल का इस्तेमाल किया जाता है, जो तापमान, हवा की गति जैसे मानकों की जांच करने में मदद करती है।
जंगल के इलाक़ों में बीच-बीच में गड्ढे खोद देना चाहिए, ताकि आग ज्यादा न फैल सके।
जंगल से उन सभी चीज़ों को हटा देना चाहिए, जो चिंगारी पैदा करती हों।
जंगल में आग पर निगरानी रखने के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नियुक्त होने चाहिए।
आग जलाने के काम को नियन्त्रित किया जाना चाहिए, जिससे जंगल में पेड़ से गिरी चीड़ के पेड़ की पत्तियाँ इकट्ठी न होने पाएँ।
जंगल में ज्वलनशील पत्तियों का फैलाव नहीं होना चाहिए, साथ ही चीड़ की सुई जैसी पत्तियों के वैकल्पिक प्रयोग को सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाए।
वन विभाग के पास वायरलैस के जरिए संचार करने का बेहतर साधन होना चाहिए, जिससे जंगल में लगी आग पर जल्दी काबू पाया जा सके।
पेड़ों को काटने के खिलाफ तुरन्त कार्रवाही होनी चाहिए।
वन विभाग के पास एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए तेज वाहन की व्यवस्था होनी चाहिए।
जंगल के आस-पास रहने वाले लोगों को लकड़ी लेने का अधिकार बनाए रखा जाए।
वनों की देखभाल और उनके संरक्षण के लिए वन विभाग को पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाए।