लखनऊ। कश्मीरी पंडितों के पलायन की ख़बरें पहले भी लोगों ने सुनीं थीं लेकिन विवेक अग्निहोत्री ने जिस तरह इस घटना को परदे पर उतारा है उसने सभी को झकझोर कर रख दिया है। एक फिल्म के अंदर अत्याचार की पूरी कहानी को दिखाना किसी भी निर्देशक के लिए संभव नहीं था लेकिन विवेक अग्निहोत्री ने संपूर्ण घटनाक्रम को जिस तरह पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया है है वो काबिलेतारीफ है। कश्मीरी पंडितों का पलायन 19 जनवरी 1990 को शुरू नहीं हुआ था। कश्मीरी पंडितों के साथ हुई क्रूरता का आगाज तो दस साल पहले से हो गया था, जब 1980 में पाकिस्तान ने सैय्यद सलाउद्दीन और यासीन मलिक जैसे आतंकियों की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी। इन्ही के द्वारा कश्मीर घाटी में सबसे पहले धर्म के नाम पर कश्मीर के नागरिकों बांटना शुरू किया गया। इसके बाद स्थानीय लोगों के दिमाग में जहर भरा गया और फिर नब्बे के दशक का वो खूनी खेल शुरू हुआ जो आज तक नहीं भुलाया जा रहा है।
19 जनवरी 1990 की सर्द सुबह। कश्मीर की मस्जिदों से उस रोज अज़ान के साथ-साथ कुछ और नारे भी गूंजे। ‘यहां क्या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है। इसके बाद रात होते होते हजारों कश्मीरी पंडितों का कत्ल कर दिया गया था। मरने वालों में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे। निर्दोष कश्मीरी पंडितों के साथ ऐसी अमानवीयता की गई थी जिसे देखकर हर किसी का कलेजा कांप जाए। आतंकियों ने मस्जिदों से एलान किया या तो अपना धर्म परिवर्तन करो या भाग जाओ या फिर मरो। जिन्होंने कुछ करने की हिम्मत की उन्हें मोत के घाट उतर दिया गया। जिसके बाद पुश्तैनी घरों को छोड़कर कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन का फैसला किया। उस रात घाटी से पंडितों का पहला जत्था निकला। मार्च और अप्रैल के दरम्यान हजारों परिवार घाटी से भागकर भारत के अन्य इलाकों में शरण लेने को मजबूर हुए। बताया जाता है कि आतंकियों ने 20 हजार कश्मीरी पंडितों के घरों को फूंक दिया था और इसके अलावा कश्मीर में 100 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज और 100 के करीब मंदिरों को तोड़ दिया गया था। बताया जाता है कि कश्मीरी पंडितों के साथ जुल्म की ये दास्तान बहुत पहले ही शुरू हो गई थी लेकिन 19 जनवरी 1990 आतंकियों ने ऐसा कत्लेआम मचाया कि कश्मीरी पंडितों को आखिरकार अपना घर बार छोड़कर अन्य राज्यों में शरण लेनी पड़ी।
यासीन मलिक सार्वजनिक तौर पर ये बात स्वीकार कर चुका है कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के पीछे उसकी बहुत बड़ी भूमिका थी। ठीक इसी तरह बिट्टा कराटे भी यह बात मान चुका है कि उसने घाटी में कई लोगों की हत्या की। एक इंटरव्यू के दौरान तो वो ये भी कह चुका है कि उसने कितने लोगों की हत्या की, उसकी संख्या भी उसे याद नहीं. बिट्टा कहता है कि अगर उसे अपनी मां या भाई का कत्ल करने का आदेश भी मिलता तो वह उनकी भी हत्या करने से नहीं हिचकता. बिट्टा ये भी बताता है कि कैसे उसने 22 वर्षीय कश्मीरी पंडित सतीश कुमार टिक्कू की हत्या से घाटी में कत्लेआम का सिलिसला शुरू किया था। बिट्टा फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. सरकार ने जेकेएलएफ को प्रतिबंधित कर दिया है और इसका सरगना यासिन मलिक भी तिहाड़ जेल में बंद है. लेकिन यासीन मलिक और बिट्टा कराटे को अभी भी वो सज़ा नहीं मिल पाई है जिसके वो हकदार हैं।