निर्भया रेप केस को पूरे हुए 9 साल , आज ही के दिल्ली के दामन पर लगा था बदनुमा दाग
राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया रेप केस को आज 9 साल पूरे हो गए हैं। साल 2012 के निर्भया रेप केस को याद करें तो आज भी हर किसी की रूह कांप उठती है। इस रेप को जिस हैवानियत के साथ अंजाम दिया गया वह बेहद भयानक और नृशंस था। इस घटना को 9 साल गुजर चुके हैं लेकिन आज भी न जाने कितनी लड़कियां और महिलाएं रोजाना ऐसी दरिंदगी का शिकार होती हैं। कई निर्भया तो अपने ही घरों में बलात्कार का सामना करती हैं और सालों से कर रही हैं। निर्भया गैंगरेप के बाद लोगों को उम्मीद थी कि परिस्थितियां, सिस्टम और कानून व्यवस्था में कोई बड़ी बदलाव दिखेगा और महिलाएं सुरक्षित होंगी। लेकिन क्या सचमुच ऐसा कुछ भी हुआ। इसका जवाब शायद आज भी ‘नहीं’ हीं है।
16 दिसंबर की उस सर्द रात में चलती हुई बस के अंदर पांच दरिंदों ने 23 साल की निर्भया के साथ जो किया उसने मानवीय संवेदनशीलता को छलनी कर दिया था। हादसे के बाद 13 दिन तक जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ने वाली निर्भया ने आखिर में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। निर्भया केस के बाद राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश भर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कानून ने कई बड़े बदलाव किए । कई नए एक्ट आए। मगर, महिलाओं की सुरक्षा आज भी सवालों के घेरे में है। यह तो सिर्फ दिल्ली की ही बात है लेकिन इस तरह की घटना को अंजाम देने वालों के हौसले कम नहीं हुए हैं। वह आज भी देश के किसी न किसी हिस्से में इस तरह की घिनौनी वारदात को अंजाम दे रहे हैं।
27 नवंबर 2019 को ही हैदराबाद में दिल दहला देने वाली एक घटना घटी है। प्रियंका रेड्डी, जो कि पेशे से जानवरों की डॉक्टर थीं उनका सामूहिक रेप करके अपराधियों ने उन्हें मारा और फिर उनके शरीर को जला भी दिया । जबकि निभर्या केस के बाद बहुत सारे नए कानून जो कि खासतौर पर महिलाओं की सुरक्षा के नजरिए से बनाए गए थे। आज भी, नए कानूनों के बावजूद महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। उन्नाव रेप केस और हाथरस रेप केस से तो हम सभी वाकिफ हैं। इसके अलावा ना जाने कितनी बच्चियां , और महिलाएं हर दिन दुष्कर्म का शिकार होती हैं।
अकसर इस तरह की घटनाओं पर खूब हो-हल्ला होता है। सड़क से लेकर संसद तक में इस पर चर्चा होती है। ऐसे मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां भी खूब सेकी जाती हैं। लेकिन हम उस वक्त इन सभी बातों को भूल जाते हैं जब हम किसी की मदद करने की बजाए वहां से बचकर निकल जाते हैं और यह सोचते हैं कि यदि हमने इसकी मदद की तो पुलिस हमें ही पकड़ लेगी। उस वक्त हमारी संवेदनाएं मर गई होती हैं। आज इन्ही संवेदनाओं को फिर से जगाने की जरूरत है। अगर हम इसमें नाकाम रहे तो फिर हम भी उसी समाज का हिस्सा कहलाएंगे जो हमेशा कहता है कि आखिर कब बदलेगा हिंदुस्तान?