यूपी के गन्ना एवं चीनी आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी ने गन्ने के रेड-रॉट रोग के रोकथाम और नियंत्रण के लिए की समीक्षा बैठक
लखनऊ: प्रदेश के आयुक्त, गन्ना एवं चीनी संजय आर. भूसरेड्डी द्वारा गन्ने के कैंसर के रूप में विख्यात रेड-रॉट (लाल सड़न) रोग के प्रकोप की रोकथामध्प्रभावी नियंत्रण के संबंध में समीक्षा की गयी।समीक्षा बैठक के दौरान इस रोग से प्रभावित क्षेत्रों में रेड-रॉट की रोकथाम करने तथा गत वर्ष इस रोग से प्रभावित खेतों का गन्ना सर्वे न करने के निर्देश जारी किये गये हैं।
इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए गन्ना आयुक्त, द्वारा बताया गया कि रेड-रॉट से संबंधित प्रभावी नियंत्रण के संबंध में समीक्षा करने पर यह तथ्य प्रकाश में आया कि प्रदेश के गन्ना क्षेत्रफल के लगभग 84 प्रतिशत क्षेत्रफल में को.0238 गन्ना किस्म की बुवाई की जाती है तथा इस किस्म का लगभग 0.8 प्रतिशत लाल सड़न रोग से प्रभावित है। चूँकि प्रदेश के बड़े हिस्से में इस किस्म की बुवाई की जाती है इसलिए इसका विस्थापन शीघ्रता से किया जाना संभव नहीं है।उन्होंने बताया कि लाल सड़न रोग के प्रकोप की प्रभावी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता हैं, जिससे को.0238 गन्ना किस्म की बुवाई करने वाले अन्य गन्ना किसानों की फसलों को इस रोग से बचाया जा सके। गन्ना विभाग द्वारा भी गन्ना कृषकों के हित में ठोस कदम उठाते हुए गत वर्ष रेड-रॉट से प्रभावित खेतों के सर्वे पर रोक लगाने की व्यवस्था की गयी है। विभाग द्वारा पूर्व में जारी व्यापक दिशा-निर्देशों को अपनाकर प्रदेश के लाखों गन्ना किसानों द्वारा लाल सड़न रोग से अपने गन्ना खेतों की सुरक्षा की जा रही है।
उन्होंने बताया कि गन्ना विभाग द्वारा पेराई सत्र 2021-2022 के लिए सर्वे कार्य शुरु कर दिया गया है, जिसे 30 जून, 2021 तक पूर्ण कर लिया जायेगा। गन्ना किसानों के हित में गन्ने सर्वे टीम को निर्देश दिये गये हैं कि जो खेत गत वर्ष रेड-रॉट से प्रभावित थे, उनका सर्वे न किया जाये। विभाग द्वाराइसके लिए प्रभावी क्षेत्रफल को ई.आर.पी. मॉड्यूल में रेड फ्लैग लगाकर चिन्हित किया जायेगा तथा उन प्लाटों का सर्वे व पर्ची जारी नहीं की जायेगी, जिससे पर्चियों के दुरुपयोग को रोका जा सके और जिन किसानों के खेत रेड-रॉट से अभी तक प्रभावित नहीं हैं उन्हें बचाया जा सके। सर्वे न किये जाने की स्थिति में उन किसानों द्वारा अन्य फसल की समय रहते बुवाई कर नुकसान से भी बचा जा सकता है।
उन्होंने यह भी बताया कि गन्ने में वर्षा काल के समय रेड-रॉट रोग का प्रकोप अत्यधिक होने की सम्भावना है, क्योंकियह रोग गन्ने में बीज के माध्यम से फैलता है तथा ऐसी गन्ना प्रजातियां जो लम्बे समय से कृषकों द्वारा बोई जा रही है उनमें अनुवांशिक ह्रास होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है तथा उन प्रजातियों में रेड-रॉट बीमारी लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। जिन क्षेत्रों में रेड-रॉट रोग का प्रभाव 20 प्रतिशत से अधिक है वहां गन्ने की तत्काल कटाई कर दी जाये और प्रभावित खेतों की गहरी जुताई कर गन्ने के ठूँठों को जलाकर नष्ट किया जाये।खेत में गन्ने के रोग ग्रस्त होने पर उसमें गन्ना न बोकर अन्य फसलों के साथ फसलचक्र पद्धति अपनाई जाये तथा 03 वर्ष तक गन्ने की फसल की बुवाई न की जाये।
गन्ना आयुक्त द्वारा समस्त फील्ड अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि रेड-रॉट के नियंत्रण के संबंध में गन्ना कृषकों के मध्य व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुए रेड-रॉट की रोकथाम हेतु जागरूक किया जाये तथा गन्ना बुवाई हेतु प्रमाणित बीज का प्रयोग करने के लिए कृषकों को प्रोत्साहित किया जाये तथा स्वस्थ गन्ना बीज का उत्पादन एवं वितरण भी सुनिश्चित किया जाये।