भारत में 47 प्रतिशत लोग मनोरोग को मानते हैं सामाजिक कलंक
नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)| भारत में मानसिक बीमारी को 47 प्रतिशत लोग सामाजिक कलंक मानते हैं, जबकि 87 प्रतिशत लोग इसे गंभीर बीमारियों और उनके लक्षणों जैसे शिजोफ्रेनिया एवं ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिस्ऑर्डर से जोड़ते हैं।
47 प्रतिशत लोग मानसिक रोगियों के बारे में मनचाही धारणा बना लेते हैं। ये लोग मानसिक बीमारी वाले लोगों के साथ सहानुभूति तो रखते हैं, लेकिन वे इनसे एक सुरक्षित दूरी भी रखना चाहते हैं। ऐसे लोग मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में अधिक देखे गए।
दिमागी सेहत के बारे में लोगों की आम धारणा को मापने के लिए द लिव लव लाफ फाउंडेशन (टीएलएलएलएफ) द्वारा ‘भारत मानसिक स्वास्थ्य को किस तरह देखता है’ जारी की गई एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
वहीं, 60 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मानसिक रोग वाले लोगों को अपने समूह बनाने चाहिए ताकि स्वस्थ लोग प्रभावित न हों और 68 प्रतिशत का मानना है कि ऐसे लोगों को किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। इसी तरह 60 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मानसिक रोग की असली वजह आत्म-अनुशासन और इच्छाशक्ति की कमी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 26 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारी वाले लोगों से डरे हुए रहते हैं। वे न तो किसी मानसिक रोगी के निकट रहना चाहते हैं और न ही उनसे बातचीत करते हैं। बंेगलुरू और पुणे शहर के लोगों में ऐसी सोच ज्यादा देखने को मिली है। 27 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारी वाले लोगों के प्रति समर्थन जताते हैं। वे भेदभाव नहीं करते और इस पर यकीन रखते हैं कि कोई भी व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रसित हो सकता है। कानपुर, पटना और दिल्ली जैसे शहरों में यह अधिक देखने को मिला।
टीएलएलएलएफ की 2018 की राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट ‘भारत मानसिक स्वास्थ्य को किस निगाह से देखता है’ जुलाई 2017 में शुरू किए गए पांच-माह के एक रिसर्च प्रोजेक्ट का नतीजा है, जिसमें आठ भारतीय शहरों के 3,556 लोगों को शामिल किया गया था। यह रिपोर्ट शुक्रवार को यहां स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अतिरिक्त सचिव (स्वास्थ्य) संजीव कुमार, टीएलएलएलएफ की संस्थापक दीपिका पादुकोण, टीएलएलएलएफ के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की अध्यक्ष एना चैंडी और इसके ट्रस्टी डॉ. श्याम भट्ट ने जारी की।
इस मौके पर दीपिका पादुकोण ने कहा, हम देश में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बेहतर समझदारी विकसित करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं और यह रिसर्च उसी दिशा में एक कदम है। हमारी रिसर्च बताती है कि उत्तरदाताओं में से एक चौथाई ही मदद देने को तैयार रहते हैं, जबकि बाकी लोग मानसिक रोगियों के बारे में कुछ भी धारणा बना लेते हैं। ऐसे में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि एक समाज के तौर पर हम जागरूकता बढ़ाने की दिशा में मिल-जुल कर प्रयास करें, इस रोग के बारे में व्याप्त गलत धारणाओं को कम करें और मानसिक स्वास्थ्य की दशा में सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया को सामान्य करें।
मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक समग्र रूप से देखे जाने के महत्व को रेखांकित करते हुए ऐना चैंडी ने कहा कि समाज की सोच को बदलने और जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।