दुनिया में 10 करोड़ लोगों को अच्छी नींद नहीं आती
नई दिल्ली, 15 मार्च (आईएएनएस)| बेहतर स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद जरूरी है, लेकिन एक सर्वेक्षण में पता चला है कि दुनियाभर में 10 करोड़ लोग स्लीप एप्निआ यानी अच्छी नींद न आने की समस्या से जूझ रहे हैं।
इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक लोग तो इस बीमारी से ही अनभिज्ञ हैं और 30 प्रतिशत लोग नींद लेते भी हैं तो उसे नियमित बनाए नहीं रख पाते। स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी कंपनी फिलिप्स इंडिया लिमिटेड ने सर्वेक्षण के तहत जब 13 देशों- अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, भारत, चीन, ऑस्टेलिया, कोलंबिया, अर्जेटीना, मेक्सिको, ब्राजील और जापान में 15,000 से अधिक वयस्कों से नींद के बारे में पूछा, तो कुछ रोचक तथ्य सामने आए :
* नींद अभी भी प्राथमिकता नहीं : 67 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अच्छी नींद की जरूरत महसूस की, लेकिन यह उनकी प्राथमिकता में शामिल नहीं है। भारत में 66 प्रतिशत लोग मानते हैं कि तंदुरुस्ती के लिए नींद से ज्यादा व्यायाम जरूरी है, जबकि चिकित्सकों का मानना है कि प्रतिदिन छह से आठ घंटे नींद लेना जरूरी है।
* अच्छी नींद में बाधाएं : 61 प्रतिशत लोगों का कहना था कि किसी बीमारी के इलाज के दौरान उनकी नींद प्रभावित होती है। इनमें से 26 प्रतिशत अनिद्रा से और 21 प्रतिशत खर्राटों की वजह से पीड़ित हैं। 58 प्रतिशत लोग मानते हैं कि चिंता उनके लिए अनिद्रा का कारण है और 26 प्रतिशत लोग मानते हैं कि प्रौद्योगिकी विकर्षण अच्छी नींद में बधक है। भारत में19 प्रतिशत वयस्कों ने कहा कि सामान्य नींद के समय के साथ काम के घंटों का बहुत बढ़ जाना (शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर) नींद में एक प्रमुख बाधा है। अन्य 32 प्रतिशत भारतीय वयस्कों ने कहा कि प्रौद्योगिकी भी एक प्रमुख नींद विकर्षण है।
* खराब नींद का प्रभाव : खराब नींद के लिए दुनियाभर में 46 प्रतिशत वयस्क थकान व चिड़चिड़ा व्यवहार को जिम्मेदार मानते हैं और 41 प्रतिशत इसके लिए प्रेरणा की कमी तो 39 प्रतिशत एकाग्रता की कमी इसका प्रमुख कारण मानते हैं।
* अच्छी नींद पाने के प्रयास : दुनियाभर में 77 प्रतिशत वयस्कों ने अपनी नींद में सुधार की कोशिश की है। लोकप्रिय प्रयासों में शामिल हैं सुखदायक संगीत (36 प्रतिशत) और सोने के समय उठने के समय सारिणी का पालन (32 प्रतिशत) सहित अन्य। भारतीय उत्तरदाताओं में से 45 प्रतिशत वयस्कों ने बताया कि उन्होंने अच्छी नींद के लिए ध्यान केंदित करने की कोशिश की, जबकि 24 प्रतिशत वयस्कों ने अच्छी नींद लेने और उसे बनाए रखने के लिए विशेष बिस्तर को अपनाया।
* युवा पीढ़ी की अलग सोच : युवा पीढ़ी (18 से 24 वर्ष आयु वर्ग) नींद के बारे में अलग ढंग से सोचती है। इन युवाओं के पास सोने का समय निर्धारित होने की संभावना कम है, फिर भी वे हर रात अधिक नींद लेते हैं यानी 7.2 घंटे सोते हैं। इनकी तुलना में 25 वर्ष से अधिक के लोग 6.9 घंटे ही सोते हैं। वे अच्छी नींद लेने की आदत न अपनाने पर भी ज्यादा अपराध बोध महसूस करते हैं (35 वर्ष से अधिक आयु के 26 प्रतिशत की तुलना में 35 प्रतिशत)।
फिलिप्स में निद्रा और श्वसन देखभाल विभाग के प्रमुख डॉ. हरीश आर. ने कहा, स्लीप डिसऑर्डर लोगों की समझ से अधिक गंभीर समस्या है, इसका सीधा संबंध अन्य गंभीर बीमारियों जैसे हृदय संबंधी रोग, मधुमेह और हृदयाघात आदि से है। ऐसे देश में जहां खर्राटों को पारंपरिक रूप से ध्वनि नींद से जोड़कर देखा जाता है, वहां लोगों को इस बारे में जागरूक करना कि यह एक गंभीर स्लीप डिसऑर्डर है, अत्यंत चुनौतीपूर्ण है।
उन्होंेने कहा, स्लीप डिसऑर्डर पर जागरूकता कार्यक्रम के साथ लोगों ने अब अपने स्वास्थ्य को सुधारने में इसके महत्व को महसूस करना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में हम जागरूकता में वृद्धि करने में सक्षम रहे हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निद्रा चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजय मनचंदा ने कहा, नींद जीवन का एक अनिवार्य और सक्रिय चरण है। हालांकि लोग ऐसे मुद्दों के प्रति अधिक शिक्षित और जागरूक बन रहे हैं, जिनके कारण स्लीप डिसऑर्डर पैदा हो सकते हैं, फिर भी यहां बहुत बड़ी जनसंख्या अभी भी लापरवाह है।
उन्होंने कहा कि स्लीप एप्निआ आमतौर पर हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे एक या अधिक सह-रोगों के साथ जुड़ा हुआ है। ज्यादातर नींद की समस्या पूरी तरह से इलाज योग्य है और कई मामलों में इलाज वाले व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता में महत्वपूर्ण परिवर्तन भी देखा गया है।