स्वास्थ्य

‘दि कंडोम मैन’ में एचआईवी पीड़ितों के संघर्ष का दर्शन

नई दिल्ली, 10 दिसम्बर (आईएएनएस)| दिल्ली में समलैंगिकों के जीवन को रेखांकित करने के लिए नाटक और दुनिया भर से लाई गईं फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।

दो दिवसीय इस सम्मलेन में ‘दि कंडोम मैन’ फिल्म का भी प्रदर्शन हुआ, जिसमें आयरलैंड में हीमोफिलीएक, एचआईवी एवं एड्स पीड़ितों के संघर्ष को दर्शाया गया है। हार्मलेस हग्स और इम्पल्स ने एड्स हेल्थकेयर फाउंडेशन के सहयोग से रविवार को यहां दो दिवसीय तीसरे दिल्ली इंटरनेशनल क्वीर थिएटर और फिल्म फेस्टिवल (डीआईक्यूटीएफएफ) 2017 का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के साथ मानवाधिकारों, स्वीकार्यता, एचआईवी की रोकथाम और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के लिए उनके संघर्ष में जुड़ने का है।

इस अवसर पर एड्स हेल्थकेयर फाउंडेशन इंडिया केयर्स के गुडविल एंबेस्डर एवं राजपीपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल ने कहा, दिल्ली इंटरनेशनल क्वीर थिएटर और फिल्म फेस्टिवल युवा थिएटर कालाकारों और फिल्म निर्माताओं को एलजीबीटी मुद्दों के लिए प्रोत्साहित करने और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करने की बहुत अच्छी पहल है। इस प्रकार के फेस्टिवल दीर्घावधि में समाज में एलजीबीटी के मुख्यधारा के मुद्दों को उठाने के लिए मदद कर सकते हैं, जो गलत धारणाओं को दूर करने और बेहतर समझ और स्वीकृति बनाने में सुविधा प्रदान करेंगे।

एएचएफ इंडिया केयर्स के कंट्री प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. वी. साम प्रसाद ने कहा, दुनियाभर के देशों को एलजीबीटीक्यूआई समुदाय को गले लगाने में सम्मिलित होना चाहिए। इन समुदायों की जरूरतों और कमजोरियों को समझना ही उन्हें मुख्य धारा में लाने की ओर पहला कदम है। अलगाव और इन साथियों की उपेक्षा के परिणामस्वरूप अधिक जोखिमपूर्ण व्यवहार सामने आएगा, जो अक्सर कई संक्रमण और एसटीआई/एचआईवी आदि को आश्रय देगा, जिसकी वजह से और अधिक जनसंख्या के बीच इसका प्रसार होगा।

इमपल्स के कार्यक्रम संयोजक, विस्मय कुमार राउला ने कहा, यौन अभिविन्यास और यौन प्राथमिकताओं से जुड़ा कलंक समाज में एक बड़ी चुनौती है। समाज के बीच पहुंचने और वर्ग, लिंग और लैंगिकता के बिना सभी के लिए समान अधिकार की वकालत करने का दिल्ली इंटरनेशनल क्वीर थिएटर और फिल्म फेस्टिवल जैसा मंच एक अनूठा रास्ता है। यह उन लोगों को भी एक अवसर प्रदान करता है जो एक कमरे में बंद हैं और अभी भी अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं।

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