आज कल की बदलती हुई लाइफस्टाइल में कई लोग सिगरेट के लती हो जाते हैं। जब भी किसी ऐसे व्यक्ति को ध्रूमपान ना करने की सलाह दी जाती है, तो यही कहा जाता है कि ऐसा करने से उस व्यक्ति को फेफड़े से सम्बंधित समस्याएं हो सकती हैं।
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दिमाग पर भी काफी बुरा प्रभाव
- स्मोकिंग करने से सांस लेने में दिक्कत और कई बार तो कैंसर की समस्या तक हो सकती है।
- इतना ही नहीं सिगरेट इससे कही ज्यादा असर डालने वाली होती है और ये केवल शरीर पर ही नहीं बल्कि दिमाग पर भी काफी बुरा प्रभाव डालती है।
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क्लिनिकल डिप्रेशन का खतरा
- जो लोग स्मोकिंग करते हैं उन्हे क्लिनिकल डिप्रेशन होने का खतरा उन लोगों से कहीं अधिक होता है, जो ध्रूमपान नहीं करते हैं।
- जांच में ये बात सामने आई है कि स्मोकिंग करनेवाले 14 फीसदी कॉलेज जाने वाले युवा डिप्रेशन की किसी ना किसी स्टेज से गुजर रहे हैं, जबकि स्मोकिंग ना करने वाले स्टूडेंट्स में डिप्रेशन का कोई लक्षण नहीं पाया गया है।
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डिप्रेशन के लक्षण
- ध्रूमपान करने वाले में छात्रों में डिप्रेशन के लक्षण ज्यादा सामने आए हैं, इसके अलावा ध्रूमपान करनेवाले छात्र उन छात्रों की तुलना में शारीरिक और मानसिक रूप से भी कमजोर निकले जो ध्रूमपान नहीं करते हैं।
- अगर कोई कम उम्र में ही स्मोकिंग की शुरुआत कर लेता है तो डिप्रेशन होने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
सिगरेट ड्रिप्रेशन के खतरे को करती है दोगुना
- शोध करने वालों का यह कहना है कि तंबाकू को अभी सीधी तरह से डिप्रेशन से कनेक्ट नहीं किया जा सकता और इस पर शोध जारी है।
- तंबाकू हमारे मस्तिष्क को कई तरह से प्रभावित करता है।
- सिगरेट ड्रिप्रेशन के खतरे को दोगुना बढ़ा देती है।