अटैक पड़ने के 60 मिनट के अंदर इलाज मिले तो मरीज की जान बचाना आसान: डॉ अभिषेक शुक्ल
लखनऊ। वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण राष्ट्रीय राजधानी में स्वास्थ्य आपातकाल घोषित हो गया है, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के साथ ही राजधानी लखनऊ का भी हाल बुरा है, इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बढ़ते वायु प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश दिये हैं। श्वास रोगों के साथ ही दिल के रोगों के लिए भी वायु प्रदूषण बहुत जिम्मेदार है। यहां भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने होने के साथ, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह हमारे देश में दिल के दौरे के कारणों में से एक है।
शनिवार को अजंता अस्पताल द्वारा यहां होटल क्लार्क्स अवध में आयोजित कार्डियक मैनेजमेंट में नई संभावनाओं’ विषय पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में इन विचारों को प्रस्तुत करते हुए, अजंता अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञों ने लोगों के स्वास्थ्य के प्रति चिंता व्यक्त की। इस सीएमई के सत्र में प्रदेश भर से आये 200 चिकित्सकों ने भाग लिया, जिनमें संजय गांधी पीजीआई, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, सीजीएचस, ईसीएचएस, रेलवे के एनआर, एनईआर, एमसीएफ, आरडीएसओ अस्पतालों के विशेषज्ञों के साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ नर्सिंग होम एसोसिएशन व अन्य निजी चिकित्सक शामिल हैं।
अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ कीर्तिमान सिंह ने कहा कि यह स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वहां प्रदूषण का स्तर कम होने के कारण दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। उन्होंने कहा कि अब दिल की बीमारी उम्र से संबंधित कारक नहीं है और 25 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि “हालांकि, शुरुआती पहचान और उपचार से हृदय को नुकसान होने की संभावना कम हो जाती है। स्टडी में यह भी साबित हो चुका है कि भारतीयों को हमारे पश्चिमी समकक्षों की तुलना में कम से कम 10 साल पहले दिल की बीमारियां होती हैं।
सीएमई में इससे पूर्व अस्पताल के मुख्य कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक शुक्ल ने कहा कि दिल का दौरा पड़ने के एक घंटे के अंदर का समुचित उपचार एंजियोप्लास्टी सिर्फ 30 फीसदी मरीजों को ही मिल पाती है, शेष 70 प्रतिशत दिल के दौरे के रोगी इस उपचार से महरूम रह जाते हैं, और काल के गाल में समा जाते हैं। यह आंकड़ा भी अधिकतर मेट्रो शहरों तक ही सीमित है। समय पर इलाज न मिलने की बड़ी वजहों में समुचित उपचार की उपलब्ध सुविधाओं में कमी के साथ ही परिजनों की जागरूकता का अभाव है। अगर सुविधा मौजूद हों और परिजन मरीज को लेकर समय से कार्डियोलॉजिस्ट तक पहुंच जायें तो इन 70 प्रतिशत रोगियों को बचाया जा सकता है। हार्ट अटैक पड़ने के एक घंटे के अंदर इलाज का महत्व इतना है कि इस अवधि को ‘गोल्डन आवर’ यानी सुनहरा घंटा नाम दिया गया है।
डॉ अभिषेक शुक्ल ने कहा कि वैसे तो दिन प्रति दिन दिल के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं और इसमें जान का भी जोखिम है लेकिन अगर अटैक पड़ने के 60 मिनट के अंदर मरीज का उचित उपचार किया जाए तो उसे मौत के मुंह से बचाया जा सकता है। इस स्वर्णिम एक घंटे में दिल को हुई क्षति को कम किया जा सकता है और एक हृदय रोग विषेषज्ञ की देखरेख में दिया गया इलाज जान बचा सकता है।
डॉ. शुक्ल ने कहा कि कुछ ही कैथलैब हैं जो इस गोल्डन ऑवर में सफल इलाज सुनिश्चित करती हैं। उन्होंने बताया कि एक साल में देश में 21 लाख लोगों की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि त्वरित एंजियोप्लास्टी से दिल का दौरा पड़ने का खतरा 32 से लेकर 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है और भविष्य में भी आशंका कम कर देता है। इस मौके पर अजंता हार्ट केयर एंड कैथ लैब की स्थापना के बाद से बीते सवा साल से ज्यादा की अवधि में किये गये खास केसों के बारे में भी बताया कि किस तरह से उन्होंने एंजियोग्राफी-एंजियोप्लास्टी कर मरीजों की जान बचाने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा हर उम्र के मरीजों की सफल एंजियोप्लास्टी की गयी है इनमें 27 वर्ष के युवक से लेकर 92 वर्ष के बुजुर्ग शामिल हैं।
अजंता अस्पताल के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. दीपक दीवान ने इस मौके पर बताया कि हालांकि किडनी केवल .2 प्रतिशत ही शरीर का वजन रखती है लेकिन दिल में खून पंप करने में इसका सहयोग 25 प्रतिशत रहता है। इसका मतलब दिल और किडनी के बीच मिश्रित वार्ता होती है जो एक दिल के मरीज के लिए बहुत जरूरी होता है। उन्होंने यह साफ किया कि स्वस्थ दिल के साथ ही स्वस्थ किडनी भी एक सेहतमंद शरीर के लिए निहायत जरूरी है।
इस अवसर पर अजंता हॉस्पिटल के प्रबंध निदेषक डॉ. अनिल खन्ना ने दावा किया कि अजंता अस्पताल का समर्पित और अनुभवी तकनीकी स्टाफ और अत्याधुनिक कैथलैब एक शानदार विकल्प साबित हुआ है उन दिल के मरीजों के लिए जो समय रहते बेहतर इलाज चाहते हैं और सरकारी अस्पतालों की लंबी कतारों से मुक्ति भी।
उन्होंने कहा कि विगत 15 माह में हमारा मरीजों की जान बचाने की सफलता दर शानदार रही है। जनमानस में इस बीमारी के प्रति जागरूकता के लिए कई शिविरों का भी आयोजन किया गया है। दिल की बीमारियों में इलाज के बारे में डॉक्टरों के लिए अजंता अस्पताल में समय-समय पर मेडिकल एजुकेशन के सत्र(सीएमई) भी आयोजित कराए जाते हैं ताकि इस विधा में अति आधुनिक तकनीक से परिचित हों। इस सत्र के बाद गजल का भी एक दौर चला डॉक्टरों को तनाव से मुक्त कराने के लिए क्योंकि समाज में दिल तंदरुस्त हो इसके लिए पहले एक डॉक्टर का दिल स्वस्थ होना बहुत जरूरी है।