भारतीय परंपरा में आस्तिकों व नास्तिकों, दोनों के लिए सम्मान : दलाई लामा
जम्मू, 18 मार्च (आईएएनएस)| तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को कहा कि भारत के हजारों साल पुराने आध्यात्मिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में न सिर्फ अलग-अलग मतों को मानने वालों के प्रति सम्मान समाहित बल्कि इनमें नास्तिकों का भी सम्मान किया गया है।
यहां जम्मू विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने जम्मू एवं कश्मीर का विशेष उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, जम्मू एवं कश्मीर ऐसा राज्य है जहां बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई पूर्ण सौहार्द के साथ रहते हैं। यह राज्य भारत के सच्चे सौहार्द का प्रतिनिधित्व करता है।
उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि जिस तरह बड़े देश और उत्तर कोरिया जैसे छोटे देश भी सैन्य शक्ति की प्रतिस्पर्धा में लगे हैं, उससे वर्तमान सदी विनाश की सदी बन सकती है।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है कि मानव जीवन का मूल स्वभाव दयालुता है।
उन्होंने कहा, मेरा अपना अनुभव है कि लगातार गुस्सा और भय से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। हमारे शिक्षा तंत्र का यह दायित्व है कि वह करुणा के मूल तत्व को आगे ले जाए जिससे दुनिया में एक उम्मीद जिंदा रहे।
तिब्बती नेता ने कहा, इस मामले में मैं कथित आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का घोर आलोचक हूं जो भौतिक मूल्यों पर केंद्रित हैं।
दलाई लामा ने कहा, आठवीं सदी में एक तिब्बती शासक ने एक विद्वान को नालंदा से आमंत्रित किया था जो आध्यात्मिक मूल्यों से सम्पन्न था।
उन्होंने कहा कि नालंदा एक मठ नहीं बल्कि एक संपूर्ण विश्वविद्यालय था जहां लोग तर्कशास्त्र पढ़ते थे।
दलाई लामा ने कहा, मेरी अमेरिका और यूरोप के विद्वानों से चर्चा होती रही है जो यह मानते हैं कि प्रचीन भारतीय मूल्य वर्तमान विश्व के लिए प्रासंगिक हैं।