चीन की मांग घटने से कॉटन में छायी सुस्ती
नई दिल्ली, 14 फरवरी (आईएएनएस)| कॉटन के सबसे बड़े उपभोक्ता चीन की आयात मांग घटने की उम्मीदों से दुनियाभर के कॉटन बाजार में सुस्ती छा गई है। वैश्विक बाजार से मिल रहे संकेतों से भारतीय बाजार में बुधवार को अप्रत्याशित मंदी का महौल बना रहा। हाजिर बाजार में कॉटन का भाव पिछले कारोबारी सत्र के मुकाबले 100-300 रुपये प्रति कैंडी (356 किलोग्राम) गिरा जबकि वायदा में भी करीब डेढ़ सौ रुपये की नरमी बनी रही। हालांकि भारतीय कॉटन कारोबारी चीनी मांग घटने से भारतीय कारोबार पर ज्यादा असर पड़ने की बात से इनकार करते हैं। उनका कहना है भारत चीन को ज्यादा निर्यात नहीं करता है। इसलिए आगे चीनी नववर्ष के कारण मांग में कमी होने की बात हो या फिर वहां सरकारी भंडार से बिक्री शुरू होने से आयात मांग में कमी आने से भारतीय कारोबार बहुत प्रभावित नहीं होगा।
चीन में 15 फरवरी से 22 फरवरी तक नववर्ष के उपलक्ष्य में बाजार बंद रहेगा। वहीं, मार्च में वहां सरकारी भंडार से कॉटन का ऑक्शन शुरू होने जा रहा है।
भारतीय समयानुसार 16.39 बजे कॉटन का फरवरी वायदा मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर पिछले सत्र के मुकाबले 140 रुपये की कमजोरी के साथ 19,760 रुपये प्रति गांठ (170 किलोग्राम) पर कारोबार कर रहा था जबकि इस सौदे का ऊपरी स्तर 19900 रुपये रहा। कॉटन के अन्य सौदों में भी गिरावट दर्ज की गई। इस सीजन में कॉटन का भाव एमसीएक्स पर अधिकत 21,170 रुपये प्रति गांठ रहा है।
वहीं हाजिर में इस सीजन में गुजरात शंकर-6 (29 एमएम)का भाव 42,200 रुपये प्रति कैंडी तक गया है जबकि इस समय 40,000 से 41,000 रुपये चल रहा है।
गुजरात के कॉटन निर्यातकर्ता व कारोबारी धीरज खेतान का कहना है कि करीब 65 फीसदी फसल बाजार में आ चुकी है। इसलिए विभिन्न प्रदेशों के एसोसिएशन की रिपोर्ट के आधार पर कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से जारी 211 लाख गांठ की आवक में कोई संदेह नहीं है। स्पिनर्स व जिनर्स के पास पर्याप्त स्टॉक होने से घरेलू मांग थोड़ी सुस्त रह सकती है।
खेतान के मुताबिक, पाकिस्तान में कॉटन की मांग तो है लेकिन निर्यात में कोई ज्यादा इजाफा नहीं हो रहा है। इसकी वजह यह हो सकती है कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक रिश्ते अच्छी नहीं होने से कारोबार में विश्वास पैदा नहीं हो रहा है। उधर, चीन से भी मांग कम रहने की उन्होंने आशंका जताई।
चीन से कॉटन की मांग के बारे में गुजरात के राजा इंडस्ट्रीज के प्रमुख दिलीप भाई पटेल कहते हैं कि चीन में आरक्षित भंडार की बोली अगले महीने शुरू हो जाएगी। इसके बाद उसकी निर्यात मांग में कमी आ सकती है। हालांकि, चीन सबसे ज्यादा कॉटन अमेरिका से खरीदता है और इसकी वजह अमेरिकी क्वालिटी है, लिहाजा अच्छी क्वालिटी के कॉटन की मांग बनी रहेगी। अगर चीनी मांग घटने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भाव टूटेगा भी तो ज्यादा नहीं टूटेगा इसलिए भारतीय बाजार पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा।
पटेल ने कहा, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कॉटन में सुस्ती की स्थिति रहने पर भाव 72-73 सेंट प्रति पाउंड से नीचे नहीं घटेगी। वहीं तेजी की स्थिति अब तक 84 सेंट प्रति पाउंड तक की देखी जा चुकी है। आगे अगर तेजी की कोई बड़ी वजह बनती है तो भाव में 90 सेंट प्रति पाउंड तक का उछाल देखा जा सकता है।
उनके मुताबिक, घरेलू बाजार में बेंचमार्क कॉटन एस-6 (29 एमएम) का भाव गिरावट की सूरत में 39,000 रुपये प्रति कैंडी के निचले स्तर तक फिसल सकता है। वहीं, तेजी की सूरत में 44,000 रुपये प्रति कैंडी का ऊपरी स्तर छू सकता है।
दिलीप पटेल भी मार्च तक कॉटन के मौजूदा भाव में कोई बड़ी तेजी नहीं देखते हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय संकेतों से तेजी व मंदी देखी जा सकती है लेकिन उसका असर क्षणिक रहेगा।
निर्यात को लेकर दिलीप पटेल और धीरज खेतान दोनों का अनुमान सीएआई के अनुमान से मिलता जुलता है। धीरज खेतान चालू कॉटन उत्पादन व विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर)50-55 लाख गांठ कॉटन के निर्यात का अनुमान लगाते हैं। वहीं पटेल 50-60 लाख गांठ कॉटन निर्यात का अनुमान लगाते हैं।
दिलीप भाई पटेल ने कहा कि आगामी सीजन में कॉटन की बुआई में थोड़ा इजाफा हो सकता है क्योंकि सरकार ने कॉटन समेत सभी अधिसूचित फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना इजाफा कर दिया है इससे किसान प्रोत्साहित होंगे।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीआईए) ने चालू कॉटन उत्पादन व विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में भारत में कॉटन के उत्पादन अनुमान में आठ लाख गांठ घटाकर देश में 3.67 करोड़ गांठ कॉटन का उत्पादन होने का अनुमान लगाया है। देश में कॉटन की कुल आपूर्ति 4.17 करोड़ गांठ रह सकती है जिसमें 30 लाख टन पिछले साल का स्टॉक (ओपनिंग स्टॉक) शामिल है और सीएआई के अनुमान के मुताबिक 20 लाख गांठ कॉटन का आयात हो सकता है। घरेलू खपत 3.20 करोड़ गांठ है जबकि सीएआई का अनुमान है कि इस साल भारत 55 लाख गांठ कॉटन का निर्यात करेगा। इस प्रकार अगले साल के लिए सीजन के अंत में 30 सितंबर 2018 को 42 लाख गांठ का स्टॉक (कैरी फॉर्वर्ड) बच जाएगा।