Uncategorized

प्रकाश झा ने की लैंगिक समानता की वकालत

पणजी, 11 फरवरी (आईएएनएस)| यौन उत्पीड़न के खिलाफ जहां हॉलीवुड में ‘मी टू’ अभियान के बैनर तले विरोध प्रदर्शन की तेज आंधी शुरू हो गई है, बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार प्रकाश झा ने आगे आकर भारतीय फिल्म उद्योग में लैंगिक समानता की वकालत की।

उन्होंने यहां ‘डिफिकल्ट डायलॉग्स’ में बॉलीवुड में महिला कलाकारों की कम संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए ‘इसे अपने समय का दुख’ करार दिया।

कार्यक्रम के तीसरे सत्र का शीर्षक ‘सिनेमा में लैंगिक चित्रण’ रखा गया था। डिफिकल्ट डायलॉग्स की संस्थापक निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुरीना नरूला ने कहा कि हमारे जीवन पर फिल्मों का बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है, इसलिए इनका निरीक्षण करना आवश्यक हो गया है।

पैनल के सदस्य झा ने उनसे कहा कि किरदार का विश्लेषण करना मुश्किल है, क्योंकि वे आपके अध्ययन और अवलोकन का प्रतिबिंब होते हैं। समाज में सशक्त महिलाओं की संख्या ज्यादा नहीं होने के कारण संभवत: सशक्त भूमिकाएं भी नहीं होती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को वास्तविक जिंदगी में जैसा देखा जाता है, वैसे ही सिनेमा में देखने की कोशिश करते हैं।

झा ने कहा, यह बात समझनी होगी कि सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी कितनी कम है। फिल्म निर्माण, कहानी लेखन से लेकर कैमरे और निर्देशन तक के हर क्षेत्र पर पुरुषों का कब्जा है। मैं महिलाओं और लड़कियों के लिए जिम्मेदारी महसूस करता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि हम उनके साथ कितना बुरा बर्ताव करते हैं।

फिल्म निर्देशक ने कहा, उन्हें मौके दो, लड़कियां फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगी, लेकिन उन्हें मौके नहीं मिलते हैं। इस समय की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि यह मान लिया गया है कि महिलाएं पुरुषों की सेवा करने के लिए हैं।

झा ने आगे कहा कि एक फिल्म निर्माता के तौर पर उनकी जिम्मेदारी है कि अच्छी कहानी जनता तक पहुंचाई जाए, जिसमें अच्छे किरदार, नैतिकता के साथ-साथ मनोरंजन का भी समावेश हो। उन्होंने कहा कि उनकी जिम्मेदारी है कि छोटे-छोटे काम करते रहें और वे अपनी फिल्मों के किरदारों की सहायता से ऐसा करेंगे।

प्रकाश झा ने दावा किया कि भारतीय सिनेमा का यह सबसे अच्छा समय है, जहां ऐसे दर्शक हैं जो हर प्रकार का सिनेमा पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, एक सामान्य कहानी को अगर अच्छी तरह पेश किया जाता है, तो वह अपने दर्शक ढूंढ़ ही लेती है।

फिल्म विशेषज्ञ और लेखक शोभिनी घोष ने कहा कि यह कोई संस्थानिक अध्ययन नहीं है कि फिल्मों से समाज का व्यवहार बदलता है, हां लोग प्रभावित जरूर होते हैं। लेकिन इस प्रभावों से हम कोई अनुमान नहीं लगा सकते।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close