दिल्ली में ललित जयंती पर मैथिली स्पीकिंग कोर्स शुरू
नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)| सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था मिथिलालोक फाउंडेशन ने शुक्रवार को देश की राजधानी दिल्ली में ललित जयंती मनाई।
लक्ष्मीनगर स्थित ब्रिटिश लिंग्वा के प्रांगण में आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों ने पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र को याद किया। फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने दिवंगत ललित नारायण मिश्र का मैथिली से लगाव को ध्यान में रखकर इस अवसर पर मैथिली स्पीकिंग कोर्स का शुभारंभ किया। यह निशुल्क कोर्स मिथिलालोक फाउंडेशन एवं ब्रिटिश लिंग्वा के संयुक्त प्रयास से शुरू किया गया है।
डॉ. झा ने कहा, आज हम जिस भाषा दक्षता और कौशल विकास की बात कर रहे हैं, ललित बाबू ने वर्षो पहले इस ओर कदम बढ़ाया था। उनके प्रयास से मिथिला के घर-घर चित्रकारी से आज पूरी दुनिया रूबरू हो पाई है। ललित बाबू ने इस चित्रकारी को मधुबनी पेंटिंग नाम देकर इसे प्रसिद्ध दिलाई थी।
उन्होंने कहा कि मैथिली आज संविधान की अष्ठम अनुसूची में शामिल भाषा है और इसमें ज्ञान-विज्ञान का सागर और मिथिला की विरासत समाहित है, लेकिन अपनी जड़ से कटे मिथिला के प्रवासी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरू जैसे महानगरों व विदेशों में आज अपनी इस विरासत से महरूम बने हुए हैं।
डॉ. झा ने कहा कि जगजननी सीता मिथिला की धरती से ही पैदा हुई थीं। भाषाविद् जॉर्ज ग्रियर्सन ने मैथिली को दुनिया की मधुरतम भाषा कहा था। जाहिर है कि इस भाषा में भाव संप्रेषण से ऐसा आकर्षण पैदा होता है कि अन्य भाषा के लोग यूं ही खिंचे चले आते हैं। मैथिली की इस विशेषता और प्रवासी मैथिल की विवशता को ध्यान में रखकर ही उन्होंने प्रवासी व दिल्लीवासी नई पीढ़ी को मैथिली सिखाने का बीड़ा उठाया है।
भाषाशास्त्री डॉ. झा कहते हैं कि मैथिली स्पीकिंग कोर्स से देश दुनिया के लोग मिथिला के ज्ञान-विज्ञान से रूबरू हो पाएंगे। विदेशी छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों के लिए विशेष मैथिली स्पीकिंग कोर्स की व्यवस्था की गई है।
उन्होंने बताया कि इस कोर्स में प्रारंभिक व उच्च स्तर पाठयक्रम शामिल किए गए हैं। प्रारंभिक पाठ्यक्रम में मैथिली भाषा का ज्ञान, उच्चारण तकनीक आदि की बारीकियों को शामिल किया गया है, जबकि उच्च पाठ्यक्रम में यूपीएससी, बीपीएससी आदि परीक्षाओं के लिए ऐच्छिक विषय के तौर पर मैथिली पढ़ने वालों के लिए विशेष व्यवस्था है।
डॉ. झा ने बताया कि दिल्ली में करीब 60 लाख मैथिल निवास करते हैं। उनके सामने अपने बच्चों को मैथिली सिखाने की समस्या है, क्योंकि प्रवासी परिवारों के बच्चे अपने दादा-दादी से जुड़ नहीं पा रहे हैं।
इस अवसर पर डॉ. कैलाश मिश्रा ने कहा कि आज जब देशी भाषाओं का तीव्रगति से अंत हो रहा है, इस अवस्था में प्रवासी एवं मैथिली मित्रों के लिए देशी और विदेशी विद्वानों और शोधार्थियों के लिए वैज्ञानिक धरातल पर इसे शिक्षित करना आंदोलन जैसा है।
उद्घाटन समारोह में भाग लेते हुए मिथिला विकास परिषद के अध्यक्ष एवं नाट्य कलाकार अशोक झा ने कहा कि मैथिली स्पीकिंग कोर्स मिथिला की संस्कृति को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा।