Uncategorized

पीएलएफ : गांवों में बसती है फिल्म की आत्मा

जयपुर, 28 जनवरी (आईएएनएस)| ‘अनारकली आफ आरा’ के गीतकार रामकुमार सिंह ने कहा कि फिल्म की आत्मा गांवों में बसती है और ऐसी कोई भी फिल्म मुश्किल से बन पाती है जिसमें ग्रामीण परिदृश्य का चित्रण नहीं हो।

उन्होंने कहा कि भविष्य में फिल्मकार गांवों पर आधारित फिल्में अधिक बनाते नजर आएंगे। रामकुमार सिंह ने ‘सिनेमा और भारतीय गांव’ को स्पष्ट करते हुए कहा कि गांवों से ही प्रतिभाएं निकलती हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मों या तमिल सिनेमा में ग्रामीण परिदृश्य को ज्यों का त्यों पेश किया जाता है जिससे कैरेक्टर के साथ भावनाएं सुस्पष्ट व अधिक प्रभावी दिखाई देने लगती हैं।

उन्होंने कहा, कहानीकार की कथा का वजूद गांव-गंवई का हो। मैं आज भी जब कहानी का प्लॉट देखता हूं या सोचता हूं तब गांव सीधे मेरे जहन मंे आता है।

समानान्तर साहित्य उत्सव के दूसरे दिन ‘सिनेमा और भारतीय गांव’ पर फिल्मकार अविनाश दास, रामकुमार सिंह, गजेन्द्र श्रोत्रिय ने अपने विचार प्रकट किए। मंच संचालन कला एवं फिल्म समीक्षक अजित राय ने किया।

‘अनारकली आफ आरा’ के निर्देशक अविनाश दास ने कहा, सिनेमा समाज को बदलता है। फिल्मकार गांवों में क्यों नहीं जाते? हमें गांवों के विकास की सोच के साथ सिनेमा को विकसित करना चाहिए। उन्होंने मात्र सवा दो लाख में बनी झांसी इलाके की एक फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि कहानी अच्छी होनी चाहिए तो कम बजट में भी अच्छी फिल्में बन सकती हैं। आज बेहतर टेक्नोलोजी का विस्तार हो चुका है। आने वाला समय मल्टीप्लेक्स से निकलकर डिजिटल में प्रवेश कर रही है। स्क्रीनिंग का कैनवास बड़ा हो रहा है।

कहानीकार चरण सिंह पथिक द्वारा लिखित फिल्म ‘कसाई’ के निर्देशक गजेन्द्र श्रोत्रिय ने कहा कि गांवों के परिदृष्य पर फिल्म बनाना आज के जमाने में रिस्क तो है लेकिन हमें ऐसे खतरे दृढ संकल्प के साथ उठाने चाहिए।

कथाकार चरण सिंह पथिक ने कहा कि आजकल ग्रामीण परिदृश्य की फिल्मों पर निर्माता-निर्देशक बजट खर्च करने से डरते हैं लेकिन अच्छी पटकथा हो तो वह फिल्म कम बजट में अच्छा मुनाफा दे सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि लगभग हर फिल्म में मौजूद ‘रामूकाका’ जैसे पात्र गांव में ही मौजूद होते हैं।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close