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दिल्ली में 2 फरवरी से शुरू होगा मैथिली स्पीकिंग कोर्स

नई दिल्ली, 22 जनवरी (आईएएनएस)| राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बसे मिथिला क्षेत्र के प्रवासियों को सांस्कृतिक व भाषाई सूत्र में पिरोने के अपने प्रयास के क्रम में गैर-सरकारी संस्था मिथिलालोक फाउंडेशन मिथिला की सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रगति की दिशा में अपने कार्यो को आगे बढ़ाते हुए दो फरवरी से मैथिली स्पीकिंग कोर्स शुरू करने जा रहा है।

अंग्रेजी भाषाविद् जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपने शोधप्रबंध में दुनिया की मधुरतम भाषा की कोटि में ‘मैथिली’ की गणना की है। जाहिर है, मैथिली की साहित्यिक प्रचुरता व प्रासंगिकता के कारण ही भारत सरकार ने इसे संविधान की अष्टम सूची में शामिल किया। इसके बाद देश के प्रथम श्रेणी के अधिकारी बनने के लिए लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में ऐच्छिक विषय के रूप में मैथिली को चुनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने यूपीएससी के अभ्यर्थियों को ध्यान में रखकर मैथिली स्पीकिंग कोर्स को डिजाइन कर मैथिली भाषी छात्र-छात्राओं के लिए एक अनोखी पहल की है। दिलचस्प बात यह है कि यह पाठ्यक्रम खासतौर से मैथिली भाषी लोगों के लिए डिजाइन किया गया है।

आमतौर पर सरकारी व निजी शिक्षण संस्थानों में हिंदी, अंग्रेजी समेत अन्य विदेशी व प्रांतीय भाषा सिखाने के लिए जो पाठ्यक्रम डिजाइन किए गए हैं, वे उन लोगों के लिए है, जिनकी वह भाषा कभी रही ही नहीं है। वे या तो मजबूरी में सीख रहे हैं या फिर शौकिया तौर पर।

डॉ. झा ने बताया, रोजीरोटी की तलाश में बिहार के मिथिला क्षेत्र से आए करीब 50 लाख मैथिल परिवार दिल्ली और एनसीईआर में निवास करते हैं। इन परिवारों के बच्चे मैथिली लिखना, पढ़ना व बोलना बहुत कम जानते हैं, क्योंकि उनको मैथिली की शिक्षा नहीं मिल पाई है। चूंकि अपनी भाषा का किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए सांस्कृतिक रूप से अपनी जड़ से कटी हुई इस युवा पीढ़ी को मैथिली बोलना सिखाने की जरूरत है।

मिथिलालोक फांडेशन ने दो मॉडयूल में पाठ्यक्रम डिजाइन किया है। पहला आरंभिक ज्ञान के लिए बिग्नर्स कोर्स है, जबकि भाषा में प्रवीणता हासिल करने के लिए एडवांस्ड कोर्स तैयार किया गया है।

उन्होंने कहा कि गैर-मैथिली भाषी लोगों के लिए भी यहां अवसर है कि वे इस भाषा को सीखकर मिथिला की सांस्कृतिक विरासत से रूबरू हो सकते हैं। इससे अंतर-सांस्कृतिक समागम भी होगा।

झा ने कहा कि जगत जननी सीता की जन्मभूमि मिथिला वैदिक काल से ज्ञान-विज्ञान का केंद्र रही है। गुरु-शिष्य परंपरा में तर्क विद्या, मीमांसा, न्यायिक दर्शन आदि के क्षेत्र में मिथिला का अद्वितीय स्थान रहा है। ‘अयाची मिश्र’ के नाम से विख्यात भवनाथ मिश्र के ज्ञान और दर्शन की चर्चा अक्सर विद्वत्परिषद में होती है। विपन्नता में भी प्रसन्नता मिथिला की माटी में है। गैर-मैथिली भाषी लोग इससे परिचित होंगे।

खास बात यह कि डॉ. बीरबल द्वारा संचालित अंग्रेजी भाषा सिखाने वाला मशहूर शिक्षण संस्थान ‘ब्रिटिश लिंग्वा’ इस साल अपनी रजत जयंती मना रहा है। निज मातृभाषा मैथिली के प्रति अगाध लगाव होने के कारण डॉ. झा ने इसके प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया है।

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