‘बचत खाते में न्यूनतम राशि की अनिवार्यता समाप्त हो’
नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)| कई गैर-सरकारी संगठनों व आम जनता से जुड़े मुद्दों के लिए काम करने वालों ने सरकार से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बचत खाते में निर्धारित न्यूनतम राशि की अनिवार्यता समाप्त करने की मांग की है।
सेंटर फॉर फायनेंशियल अकाउंटेबिलिटी नामक संस्था की ओर से कहा गया है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने बचत खाते में न्यूनतम राशि नहीं रखने वाले ग्राहकों से अप्रैल-नवंबर 2017 के दौरान 1,771 करोड़ रुपये जुर्माने के तौर पर वसूल किए हैं। दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जुर्माने की राशि 1,586 करोड़ रुपये थी, जो उक्त तिमाही में एसबीआई के कुल मुनाफे 3,586 करोड़ रुपये का तकरीबन आधा है।
एसबीआई ने महानगरीय ग्राहकों के लिए बचत खाते में मासिक 3,000 रुपये न्यूनतम राशि रखना अनिवार्य कर दिया है। वहीं अर्ध-शहरी इलाकों के ग्राहकों के लिए यह राशि 2000 रुपये और ग्रामीण इलाकों के ग्राहकों के लिए 1,000 रुपये है।
इससे पहले जून में एसबीआई ने बचत खाते में न्यूनतम राशि की अनिवार्यता 5000 रुपये कर दी थी, जिसका काफी विरोध हुआ और देश में सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक को इसमें कटौती करनी पड़ी थी। एसबीआई ने जुर्माने की राशि भी 25-100 रुपये को घटाकर 20-50 रुपये कर दी, जो वर्तमान में लागू है।
बचत खाते में न्यूनतम राशि की अनिवार्यता समाप्त करने की मांग करने वालों में अखिल भारतीय किसान सभा के सचिव हन्नान मुल्ला, नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, लोक शक्ति अभियान, ओडिशा के प्रफुल्ल सामंतरा, अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन के अशोक चौधरी और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक के मधुरेश कुमार जैसे कई सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।
संगठनों का कहना है सार्वनिक क्षेत्र के बैंकों में गरीबों के खाते होते हैं, जो अपने खातों में न्यूनतम राशि की अनिवार्यता बनाए रखने में अक्षम होते हैं। इस तरह बैंकों के इस नियम से वे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
इनका आरोप है कि सरकार एक तर तरफ लोगों को बैंक में खाते खोलने और नकद लेन-देन कम करने के लिए कहती है। दूसरी तरफ बैंकों को लोगों से जुर्माना वसूलने की छूट देती है।
सेंटर फॉर फायनेंशियल अकाउंटेबिलिटी की ओर जारी बयान में कहा गया है कि एसबीआई ने मई 2012 में अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से न्यूनतम राशि को लेकर जुमार्ना वसूलने के प्रावधान हटा दिए थे। उस दौरान कई लोगों ने अपने बैंक खाते निजी बैंकों से एसबीआई में स्थानांतरित किए थे, क्योंकि निजी बैंक न्यूनतम राशि का अनुपालन न करने के चलते भारी जुर्माना वसूल कर रहे थे। लेकिन पांच साल बाद एसबीआई ने दोबारा इस नियम को अप्रैल 2017 में लागू कर दिया।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, मार्च 2017 में भारतीय बैंकों का डूबा कर्ज 7,11,312 करोड़ रुपये था, जो जून 2017 में बढ़ कर 8,29,338 करोड़ रुपये और सित्ांबर 2017 तक 8,36,782 करोड़ रुपये हो गया।
संगठनों ने कहा, जो कॉपोरेट कर्जदार बैंकों का कर्ज नहीं चुका रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करने के बजाय सरकारी बैंकों ने अप्रैल से सितंबर 2017 में अपने कुल डूबे कर्ज में 55 हजार करोड़ से अधिक कि राशि को रमाफ कर दिया था। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर खाताधारकों से जुर्माना वसूला जा रहा है, जो अनैतिक है। अगर सरकारी बैंकों को बचत खाते के संचालन में कोई नुकसान हो रहा है तो उसकी भरपाई के लिए उन्हें कोई और रास्ता ढूंढ़ना चाहिए।
गौरतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य प्रमुख बैंकों में शुमार पंजाब नेशनल बैंक में भी बचत खाते में न्यूनतम राशि रखने की अनिवार्यता 1000 से 2000 रुपये तक है। पीएनबी ने महानगरीय व अर्ध-शहरी क्षेत्र के ग्राहकों के लिए यह राशि 2000 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र के ग्राहकों के लिए 1000 रुपये तय की है।