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वैश्विक बाजारों में दाल सस्ती, निर्यात के आसार कम

नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)| एक दशक बाद सभी प्रकार की दालों के निर्यात से प्रतिबंध हटाए जाने से दलहन कारोबारियों में कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है, क्योंकि वैश्विक बाजारों में दाल की कीमतें भारत की तुलना में कम हैं। इसलिए देश में दलहन का विशाल भंडार होने के बावजूद निर्यात की संभावना कम है। दूसरे देशों में दाम कम होने के कारण रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद भारत ने इस साल भी भारी परिमाण में दलहनों का आयात किया है। लिहाजा, घरेलू मांग की तुलना में आपूर्ति ज्यादा होने से दलहन कारोबार में सुस्ती छाई है।

कमोडिटीज कंट्रोल प्रमुख राजेंद्र डागा का कहना है कि एक दशक पहले विदेशों में दाल प्रसंस्करण स्थान नहीं के बराबर थे, लेकिन आज बर्मा में दाल मिलें लग गई हैं। इसी तरह अन्य प्रमुख दलहन उत्पादक देशों में दालों का प्रसंस्करण हो रहा है। ऐसे में भारत बहुत ज्यादा दाल निर्यात नहीं कर पाएगा।

जाहिर है कि किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम दिलाने के मकसद से ही भारत सरकार ने दालों के निर्यात से प्रतिबंध हटाया है। ऐसे में निर्यात की संभावना कम होने पर किसानों को शायद सरकार के इस कदम से ज्यादा फायदा नहीं होगा। ऐसा दलहन कारोबारी व विशेषज्ञ भी मानते हैं।

कृषि अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि दालों के निर्यात से इस समय किसानों को ज्यादा फायदा नहीं होगा। उन्होंने कहा, आयात-निर्यात के खेल से व्यापारियों को फायदा होता है, किसानों को नहीं। इस साल सभी दलहनों की औसत कीमतों में 20-30 फीसदी की गिरावट है। जाहिर है कि इसका घाटा किसानों को ही हुआ है।

शर्मा ने कहा कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दलहनों की कीमतें कम हैं, तो फिर भारत से दालों का निर्यात होगा, यह बात समझ से परे है।

हालांकि इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन विमल कोठारी मानते हैं कि सभी प्रकार की दालों के निर्यात से प्रतिबंध हटने से घरेलू बाजारों में कीमतों में कोई ज्यादा इजाफा नहीं होगा। उनका कहना है कि थोड़ा-बहुत फर्क पड़ेगा।

कोठारी ने कहा, एक दशक पहले हम दो लाख टन दाल निर्यात करते थे, तो अब पांच लाख टन निर्यात कर पाएंगे।

उन्होंने कहा कि म्यांमार में उड़द की कीमतें जहां पिछले साल 1,200 डॉलर प्रति टन (सीएनएफ)चल रही थीं, वहां इस साल 400 डॉलर प्रति टन हैं। इसी प्रकार तुअर के भाव भी पिछले साल के 1,100 डॉलर प्रति टन से गिरकर इस साल 300 डॉलर प्रति टन रह गए हैं।

दिल्ली के प्रमुख दलहन बाजार, नया बाजार मंडी में शनिवार को मूंग और देसी उड़द में क्रमश: 4800 रुपये प्रति क्विं टल और 4000 रुपये प्रति क्विं टल पर कारोबार हुआ। दो दिन पहले निर्यात खुलने की खबर के बाद अचानक 300-400 रुपये प्रति क्विं टल का उछाल आया था, लेकिन बाद में कीमतों में गिरावट आ गई। सरकार ने खरीफ फसल वर्ष 2017-18 के लिए मूंग और उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 5,575 रुपये और 5,400 रुपये प्रति क्विं टल रखा है। तुअर का एमएसपी 5,450 रुपये प्रति क्विंटल है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा दलहन उत्पादक, उपभोक्ता व आयातक देश है। सभी प्रकार के दलहनों की यहां सालाना खपत तकरीबन 240 लाख टन है।

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, फसल वर्ष 2016-17 (जुलाई-जून) में देश में दलहनों का उत्पादन 229.5 लाख टन था। इस तरह घरेलू खपत की पूर्ति के लिए दलहनों के आयात की हमारी जरूरत अभी बनी हुई है।

लगातार दो साल सूखे की स्थिति के चलते देश में फसल वर्ष 2014-15 और 2015-16 के दौरान दलहनों का कुल उत्पादन क्रमश: 171.5 लाख टन और 163.5 लाख टन दर्ज किया गया। खपत की तुलना में पैदावार कम होने से आयात पर हमारी निर्भरता ज्यादा बढ़ गई थी और आपूर्ति का टोटा बना हुआ था। नतीजतन, दालों की कीमतें आसमान छूने लगीं। दो साल पहले तुअर दाल 200 रुपये से ज्यादा भाव पर बिकने लगी थी।

कारोबारियों के मुताबिक, इस साल तकरीबन 40 लाख टन दलहनों का आयात हो चुका है। वित्तवर्ष 2016-17 में भारत ने करीब 66 लाख टन दलहन का आयात किया था। उससे पिछले साल यह आंकड़ा 58 लाख टन के करीब था।

भारत सरकार की ओर से 28 जून 2006 से दालों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ था। उस दौरान भारत सिर्फ काबुली चना का निर्यात करता था।

कोठारी का कहना है कि भारत इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा और मध्यपूर्व के दशों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल, बंग्लादेश और श्रीलंका को दाल निर्यात कर सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गुरुवार को दालों के निर्यात पर एक दशक से जारी प्रतिबंध को पूरी तरह हटाने का फैसला लिया। इससे पहले सरकार ने 15 सितंबर को तुअर, उड़द व मूंग दाल के निर्यात को मंजूरी दी थी।

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