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दिवालियापन मामलों के प्रावधान असामान्य नहीं : आरबीआई अधिकारी

कोलकाता, 13 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी-गर्वनर एन.एस. विश्वनाथन ने शुक्रवार को कहा कि दिवालियापन प्रस्ताव के संदर्भ में एनपीए (फंसे हुए कर्जे) खातों के लिए आवश्यक प्रावधान ‘असामान्य रूप से बड़ा’ नहीं है।

ऐसी चिंता व्यक्त की गई थी कि आरबीआई द्वारा तनावग्रस्त संपत्तियों के मामलों को दिवालिया और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत भेजने के लिए जो प्रावधान तय किए गए हैं, वह जरूरत से ज्यादा बड़े हैं।

विश्वनाथन ने यहां मर्चेट चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा, मैं आपको आईबीसी में मामलों के भेजने के लिए बनाए गए प्रावधानों की जरुरत को समझाता हूं।

उन्होंने कहा, सामान्यत: उन्हीं मामलों को आईबीसी को भेजा जाता है, जिसका समाधान आईबीसी से बाहर पुर्नगठन (कर्ज में छूट देकर) कर निकालना संभव नहीं है।

उन्होंने कहा, पुर्नगठन करने की योजनाओं में से एक एस4ए के तहत न्यूनतम टिकाऊ ऋण की परिकल्पना 50 फीसदी होनी चाहिए। इसिलिए यह तर्कसंगत है आईबीसी भेजे जाने मामलों के लिए कम से कम 50 फीसदी का प्रावधान किया गया है।

विश्वनाथन ने कहा कि इसका मतलब यही है कि आईबीसी को मामले 50 फीसदी से कम की वसूली के लिए भेजे जाते हैं, लेकिन यह प्रावधान होनेवाले नुकसान का अनुमान लगाने के लिए किया गया है।

उन्होंने कहा, और अगर बैंकों द्वारा उनके द्वारा किए गए प्रावधानों की तुलना में वसूली अधिक है तो बैंक वापस लिख सकते हैं .. जो भी प्रावधान आप पूछ रहे हैं, वह कुछ असामान्य रूप से बड़ा नहीं है।

आरबीआई के डिप्टी-गर्वनर ने कहा कि तनावग्रस्त परिसंपत्तियों (बैंकों के फंसे हुए कर्ज) की समस्या भारत की बैकिंग प्रणाली में बहुत आम है और सरकारी बैंकों में यह खासतौर से ‘गंभीर चिंता का विषय है।’

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