लघु फिल्मों के साथ सेंसर बोर्ड में हो रहा बुरा बर्ताव?
मुंबई, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| हाल ही में सेंसर बोर्ड के नए अध्यक्ष चुने गए प्रसून जोशी और बोर्ड की कामकाजी नीतियों के परस्पर विरोधी होने की खबरें आ रही हैं।
‘ड्रीम जिंदगी’ फिल्म के निर्माताओं को लगता है कि लघु फिल्में बनाना काफी मुश्किल साबित हो रहा है।
वहीं, 2014 में रिलीज हुई ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?’ के निर्देशक सौमित्र राणाडे ने इसे गलत बताया है।
फिल्म निर्माताओं ने दावा किया है कि हालात पहले की तरह बने हुए हैं। पिछले सप्ताह कई बड़े कट के साथ ‘ड्रीम जिंदगी’ लघु फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट दिए जाने के कारण इसके निर्माता हैरान और सदमे में हैं।
उनसे फिल्म के एक अंतरंग दृश्य को 50 फीसदी और एक महिला के रस्सी कूदने वाले दृश्य को भी 50 फीसदी काटने को कहा गया है। इन कट के बावजूद फिल्म ड्रीम जिंदगी को ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया, जबकि नए बोर्ड ने दावा किया था कि ‘ए’ सर्टिफिकेट फिल्म में कटौती से छूट देता है।
हो सकता है कि ‘ड्रीम जिंदगी’ किसी बड़े नाम वाले निर्माता की फिल्म न होने के कारण उसे कठनाई का सामना करना पड़ रहा हो। दूसरी तरफ ‘भूमि’ जैसी फिल्म जो कि एक बड़े निर्माता टी सीरीज की फिल्म है, जिसमें औरतों के खिलाफ यौन हिंसा के साथ साथ भद्दे संवाद को प्र्दशित किया गया है। उसे भारत में ‘यूए’ सर्टिफिकेट दिया गया है।
दुनिया के सभी हिस्सों में ‘भूमि’ बच्चों के लिए सही फिल्म नहीं हैं। इंगलैंड में इस फिल्म को 18 साल से कम के बच्चों को देखने पर रोक लगा दी गई है।
हंसल मेहता, जिनकी ‘सिमरन’ को नए सेंसर बोर्ड के कारण कई कटौतियों का सामना करना पड़ा, उन्हें लगता है कि कुछ भी बदला नहीं है।
उन्होंने कहा, सीबीएफसी को प्रभावी होना के लिए किसी एक व्यक्ति से ऊपर उठना पड़ेगा, जिससे मैंने हमेश बरकरार रखा है। यह केवल तभी संभव होगा जब भारत में सेंसरशिप लगाने वाले पुराने दिशानिर्देश बदल जाएंगे, क्योंकि हम डिजिटल दुनिया में रहते हैं और यहां निवास करते हैं।
वहीं दूसरी तरफ राणाडे सेंसर बोर्ड के अपनी फिल्म के साथ किए गए व्यवहार को लेकर काफी खुश हैं।
राणाडे ने कहा, पिछले कुछ सालों से सेंर बोर्ड की डरावनी कहानियां सुनता आ रहा हूं। जब मैंने सुना कि प्रसून जोशी सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, तो मुझे लगा कि इसमें जरूर सुधार होगा। लेकिन इन सबके बावजूद मैं काफी डरा हुआ था।