ब्रांड लाइसेंसिंग उद्योग के लिए भारत में है विकास के अवसर
मुंबई, 29 अगस्त (आईएएनएस)| भारत में ब्रांड लाइसेंसिंग उद्योग अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन आने वाले वर्षो में इसमें कई गुना वृद्धि होने की संभावना है। उद्योग जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों के बीच ब्रांडों के प्रति बढ़ती चेतना और आधुनिक खुदरा एवं ई-कॉमर्स की बढ़ती पैठ के कारण भविष्य में ऐसा संभव होगा।
लाइसेंस इंडिया के अध्यक्ष गौरव मार्या ने हाल में हुए इंडिया लाइसेंसिंग एक्सपो के दौरान आईएएनएस को बताया, कार्टून, एंटरटेनमेंट और कॉरपोरेट ब्रांड सहित बौद्धिक संपदा के मालिक भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए बेचैन हैं। हर कोई 1.3 अरब उपभोक्ताओं वाले देश से लाभ उठाना चाहता है, खासकर उस समय जब 900 शहरों के उपभोक्ताओं में ब्रांड को लेकर जागरूकता का स्तर बहुता ऊंचा है।
मार्या ने कहा, ब्रांड का प्रबंधन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां भी बड़े बाजार के रूप में भारत की ओर देख रही हैं। देश के संभावित लाइसेंस लेने वाले भी, जो पहले इतने उन्नत नहीं हो पाए थे कि अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड एजेंसियों की सेवा ले पाते, अब अपनी बिक्री को बढ़ाने के लिए ब्रांड की जरूरत को महसूस कर रहे हैं।
अमेरिका स्थित इंटरनेशनल लाइसेंसिंग इंडस्ट्री मर्चेडाइजर्स एसोसिएशन (एलआईएमए) के कार्यकारी अध्यक्ष मौरा रिगन ने आईएएनएस से कहा कि हालिया ग्लोबल लाइसेंसिंग इंडस्ट्री सर्वे 2017 के अनुसार, साल 2016 में 1,39.6 करोड़ लाइसेंस मर्चेडाइज खुदरा बिक्री के साथ भारत 20वें स्थान पर है।
उन्होंने कहा कि बड़े अवसर और भारत के लिए वैश्विक आशावादिता की वजह से देश की वैश्विक रैंक सुधरने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि लाइसेंस्ड मर्चेडाइज की खुदरा बिक्री और रॉयल्टी सृजन के मामले में भारत अगले 5 से 7 वर्षो में वहां होगा, जहां आज चीन है।
एलआईएमए के ग्लोबल लाइसेंसिंग इंडस्ट्री सर्वेक्षण 2017 के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ लाइसेंसिंग इंडस्ट्री बाजार का वर्तमान आकार 262.9 अरब डॉलर का है।
ब्रांड लाइसेंसिंग दरअसल निर्माता या खुदरा विक्रेता को एक निश्चित राशि पर अपना ब्रांड नेम देना है। यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जहां ब्रांड का स्वामी अन्य व्यवसायी को इस बात कि इजाजत देता है कि वह उसके ब्रांड नाम का प्रयोग कर अपने व्यवसाय को बढ़ा सकता है।
वास्तव में विदेशी लाइसेंर्स ‘सकारात्मक लागत लाभ’ की वजह से चीन की अपेक्षा भारत को लाभदायी स्थान के रूप में देख रहे हैं।
एल्विस प्रेस्ले, मोहम्मद अली, मर्लिन मुनरो, माइकल जैक्सन जैसे ब्रांड का प्रबंधन करने वाली ऑथेंटिक ब्रांड ग्रुप (एबीजी) के को-चीफ बिजनेस ऑफिसर जॉन एरलैंडसन ने आईएएनएस को बताया कि भारत में अंग्रेजी बोलने वालों की बड़ी तदाद है और वे ऑनलाइन जाकर ब्रांड की कहानी को वैश्विक प्लेटफॉर्म पर बता सकते हैं, जबकि अधिकतर चीनियों के पास यह दक्षता नहीं है। इसलिए ब्रांड की मार्केटिंग बहुत तेजी से होगी।
मार्या ध्यान दिलाते हैं, जीएसटी लागू होने के साथ संगठित खुदरा और ई-कॉमर्स ब्रांड लाइसेंसिंग इंडस्ट्री के लिए बहुत सहायक होंगे।
उद्योग के अनुमान के मुताबिक, भारत में लगभग 95 प्रतिशत खुदरा बाजार में परंपरागत और असंगठित खुदरा विक्रेताओं का दबदबा है, लेकिन तेजी से बढ़ते संगठित बाजार के 2023 तक 220 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
मार्या कहते हैं, यही वह खाली स्थान है जहां अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की जरूरत है। साल 2016 में लगभग 32 विदेशी ब्रांड ऑनलाइन और 22 ग्लोबल ब्रांड ब्रिक एवं मोटर (खुदरा दुकान) स्टोर स्थापित किए। उनमें से अधिकांश ब्रांड लाइसेंसिंग को बिजनेस मॉडल के रूप में अपना रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, लगभग 460 विदेशी ब्रांडों ने लाइसेंसिंग अथवा फ्रेंचाइजी के माध्यम से भारतीय बाजार में प्रवेश की पुष्टि की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में फैशन, मीडिया, मनोरंजन, खेल क्षेत्र लाइसेंसिंग मॉडल के तहत उन्नतिशील हैं।
वॉयकॉम 18 के सुगतो भौमिक ने आईएएनएस को बताया, उद्योग अभी भी मेट्रो और बड़े शहरों तक ही सीमित है, क्योंकि यहां विकास के अवसर ज्यादा हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि अगले पांच वर्षो में ई-कॉमर्स की लोकप्रियता के कारण कम से कम 15 प्रतिशत विकास दर के साथ टीयर 2 और टीयर 3 श्रेणी के शहर लाइसेंसिंग ब्रांड के तहत आ जाएंगे।
हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह है कि असंगठित खुदरा विक्रेताओं द्वारा नामी ब्रांडों के नकली उत्पादों को बिना किसी रॉयल्टी चुकाए अनियंत्रित तरीके से बेचा जा रहा है।
दूसरी चुनौती यह है कि स्वदेशी आईपी और ब्रांड देश में ख्याति प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खुद को बड़े पैमाने पर स्थापित कराने में सक्षम साबित नहीं हो पा रहे हैं।
मार्या के अनुसार, ऐसे स्वदेशी ब्रांडों के स्वामी अपने कोर फंक्शन तक सिमट कर रह गए हैं और उसका विस्तार नहीं कर पा रहे हैं।
‘महात्मा गांधी’, ‘बॉलीवुड’ जैसे स्वदेशी ब्रांड का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी मूल्य है, जो विदेशियों को आश्चर्यचकित कर सकता है।