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प्यार को मोटी अकल से समझे रहो हमेशा के लिए

इसलिए कम से कम कृपालु तो डंके की चोट पर कहता है। नास्तिक बन जाओ, बने रहो ठीक है, मत जाओ श्यामसुन्दर के पास। और अगर जाओ तो खबरदार मोक्ष तक की कामना ले के मत जाना। कामना डेन्जरस है।

अगर कामना लेकर के हमने कोई काम किया और कामना पूर्ति नहीं हुई तो फिर हमारा प्यार एबाउट टर्न हो जायेगा, घूम जायेगा पहिया। हम तो इतना प्यार कर रहे हैं। हैं क्या हुआ-क्या हुआ? बताओ हम दस दिन से आये हैं महाराज जी हमसे बोलते ही नहीं, बोले ही नहीं।

अच्छा जी। इससे प्यार को नाप रहे हैं। देखो ध्यान रखो उस जगत् का प्यार जो है इतना टेढ़ा है ‘‘अहेरिव गति: प्रे ण:’’ साँप की तरह टेढ़ा है।

भगवद् रसिक रसिक की बातें रसिक बिना कोउ समुझि सकै ना।

सरस्वती, बृहस्पति की बुद्धि भी फेल हो जायेगी अगर वहाँ अपना पैमाना लेकर जाओगे।
प्यार तीन प्रकार का होता है। मोटी अकल से समझे रहो हमेशा के लिए। एक भीतर भी प्यार हो बाहर भी प्यार हो ठीक-ठीक और एक भीतर प्यार हो लेकिन बाहर आउट न किया जाय और तीसरा प्यार एक और होता है भीतर प्यार हो वही सेंट पर्सेन्ट लेकिन बाहर विपरीत व्यवहार किया जाय।

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