ये तो और खतरनाक है, इसको भी छोडऩा होगा
ये लिंक है जिस वस्तु में बार-बार सुख का चिन्तन करेंगे उसमें अटैचमेंट हो जायेगा। वेदव्यास ने यही तो कहा है-
विषयान् ध्यायतश्चितं विषयेषु विषज्जते।
मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।।
(भाग. 11-14-27)
जैसे तुम संसार वालों का बार-बार चिन्तन करते हो, तो संसार घुस जाता है। वो शराब है, कबाब है, चाय है, सिगरेट है, बीड़ी है, कोई भी चीज़। बार-बार चिन्तन करने जड़ वस्तु आपकी खोपड़ी में इतनी घुस जाती है कि आपको बैठे-बैठे वो पिंच करती है, हमको पियो, हमको खाओ।
हम तुमको चैन से नहीं बैठने देंगे। तो फिर जो दिव्य वस्तु है उस रस का चस्का लग जाय अगर किसी को एक बार, तो फिर कौन शक्ति ऐसी है जो उसको कोई कहीं हटा दे। तभी तो-
अस विचारि जे परम सयाने। मुक्ति निरादरि भक्ति लुभाने॥
तो हमें संसारी वस्तुओं के लिए संसारी व्यक्ति से प्यार करना- ये तो सेंट परसेंट छोड़ देना होगा और संसारी वस्तुओं के लिए भगवान् या महापुरुष से प्यार करना या उनके शरणागत होना- ये तो और खतरनाक है, इसको भी छोडऩा होगा। दो को छोड़ देना होगा। इसके बाद क्या करना होाग? यह फिर बतायेंगे-
बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल जी जय।