‘बुराई करने वाले को सदैव साथ रखें’
लखनऊ। हर एक के जीवन में सुख है तो दुख भी है। लाभ तो हानि भी है। यश-अपयश दोनों हैं। जय पराजय से जुड़ी है। पतन है तो उत्थान भी है।
यूं तो सदा ही हम हर क्षेत्र में अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, लेकिन अक्सर ऐसा हो जाता है कि बार-बार प्रयास करने पर भी सुख मिलता नहीं, दुख ही हाथ लगता है।
लाभ दूर तक दिखाई नहीं देता, नुकसान न जाने कहां से आ जाता है। जीत का कितना ही उपक्रम करें, पराजय समय-बेसमय सामने खड़ी रहती है। कोशिश करते हैं शिखर छूने की, पर बार-बार नीचे उतरते जाते हैं।
क्या कभी इस विफलता का कारण बनी अपनी गलतियों और कमजोरियों के बारे में हमने सोचा है? क्या हमारे पास हमारी कमजोरी दिखाने वाला कोई शुभचिंतक रूपी आईना है? क्या जब वह हमारी गलती बताता है तो हम गलती सुधार लेते हैं? घर के आईने की तरह उससे भी सद्भाव बना रहता है या उनके प्रति कोई दुर्भावना मन में आ जाती है?
सचाई यह है कि कोई जब हमारे दोष को दिखाता है तो हमारे अहं को ठेस लगती है। हम जानते हैं कि बाल्टी में एक छोटा सा छेद बाल्टी का सारा पानी बाहर बहा देता है।
हमारी छोटी सी कमजोरी सारी ऊर्जा को खत्म कर देती है। मन का छोटा सा भी दोष पूरी सोच को दूषित कर हमारे पूरे व्यक्तित्व को धूमिल कर सकता है। हम अपने शरीर के रोग के साथ कभी कोई समझौता नहीं करते, तुरंत उपचार करते हैं। तो मन के दोष हमें व्याकुल क्यों नहीं करते?
कभी कहा जाता था कि इंसान के पास समस्याएं हैं। अब तो इंसान स्वयं में एक समस्या बन गया है। गलती करना तो हम बंद करते नहीं, बंद कर देते हैं गलतियों को सुनना और उन्हें सुधारना। इससे तो हमारा पतन सुनिश्चित हो जाता है। सच पूछें तो गलतियां करने वाले को आदर देना सफलता की पहली सीढ़ी है।
प्रभू की दृष्टि में ‘हैपीनेस’ ही ‘रिचनेस’ है। हम तय नहीं कर पा रहे कि हमारे लिए जरूरी क्या है- आंतरिक खुशी या बाहरी सुख? अगर हममें गलती सुनने की इच्छा-शक्ति और उसे स्वीकार कर सुधारने की क्षमता है तो न सफलता के साथ खुशी हमसे दूर है न ही परमात्मा।