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ऐतिहासिक जीवनियों के लिए भारतीय माहौल अच्छा नहीं : रामचंद्र गुहा

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नई दिल्ली | इतिहासकार एवं जीवनी लेखक रामचंद्र गुहा का मानना है कि भारत का माहौल ऐतिहासिक जीवनियां लिखने के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां जीवनियां हमेशा इस डर के साथ लिखी जाती हैं कि इससे कहीं कोई आहत न हो जाए। यह एक ऐसी समस्या है जिसका इतिहासकार नियमित रूप से सामना करते हैं। गुहा ने गुरुवार शाम साहित्य अकादमी के साहित्योत्सव के संवत्सर व्याख्यान में यह बात कही। गुहा ने कहा कि महात्मा गांधी ही भारत की एकमात्र ऐसी महान हस्ती हैं जिन पर इतिहासकार जो चाहे लिख सकते हैं, आलोचना तक कर सकते हैं, बिना इस डर के कि इससे किसी की भावना आहत होगी। गुहा ने कहा कि महात्मा गांधी सभी के हैं, फिर भी किसी के नहीं हैं। गांधी पर लिखी गई बातों के खिलाफ न प्रदर्शन होते हैं और न ही किताब प्रतिबंधित होती है।
गुहा ने व्याख्यान में वह बातें दोहराईं जो वह पहले से कहते रहे हैं। इनमें से एक यह भी है कि किसी की भावनाएं आहत करने का डर भारत में जीवंत लोकतंत्र की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है।
देश-विदेश के कई संस्थानों में पढ़ा चुके और कई पुरस्कारों से सम्मानित विख्यात इतिहासकार ने कहा कि भारत में ऐतिहासिक जीवनियां लिखने वालों के सामने पेश चुनौतियों में रिकार्ड को संभाल कर रखने के प्रति उपेक्षा और कुछ लेखकों का विराट अहंकार भी शामिल हैं। गुहा ने कहा कि जीवनी लिखने की पूर्व शर्त अपने अहं से मुक्ति और जिसके बारे में किताब लिखी जा रही है, उसकी शख्सियत के साथ इंसाफ है। अहं के टकराव की वजह से ही भ्रामक तथ्य पैदा होते हैं। गुहा ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि भारत में इतिहास को सामाजिक विज्ञान की श्रेणी में रखा जाता है। उन्होंने कहा कि इस सोच को बदलने की जरूरत है।

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