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भूमिहीनों की प्रस्तावित पदयात्रा से शिवराज सरकार सकते में

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भोपाल | मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी से भूमि संबंधी समस्याओं को लेकर एकता परिषद के बैनर तले प्रस्तावित पदयात्रा ने सरकार की नींद उड़ा दी है। पदयात्रा 18 फरवरी से निकाली जानी है। सरकार हर स्तर पर आंदोलनकारियों को मनाने में जुटी हुई है, क्योंकि यह पदयात्रा मुख्यमंत्री चौहान के उन दावों पर सवाल खड़े कर सकती है, जिसके जरिए वह अपने को गरीबों, जनजातियों, भूमिहीनों और बेघरों के सबसे बड़े मसीहा बताते हैं।
एकता परिषद के अध्यक्ष रनसिंह परमार ने कहा, “मुख्यमंत्री भले ही पूरे प्रदेश में भूमिहीनों व बेघरों से वादे कर रहे हैं, मगर उनके ही विधानसभा क्षेत्र बुधनी की तस्वीर अलग कहानी कहती है। वहां 10 हजार लोगों ने भूमि के लिए आवेदन दिए हैं, जो लंबित है। इतना ही नहीं पट्टाधारी जनजातियों को जमीन पर कब्जा नहीं मिल रहा है।” परमार ने आगे कहा, “भूमिहीनों, पट्टाधारी जनजातियों को कब्जा दिलाने की मांग को लेकर एकता परिषद ने 18 फरवरी को बुधनी से भोपाल (46 किलोमीटर) तक की पदयात्रा का निर्णय लिया है। इस पदयात्रा में एकता परिषद के संस्थापक पी. वी. राजगोपाल सहित कई प्रमुख लोग हिस्सा लेंगे।”
सरकारी सूत्रों का कहना है, “सरकार और मुख्यमंत्री चौहान स्वयं इस पदयात्रा को लेकर चिंतित हैं। उनकी ओर से प्रयास किए जा रहे हैं कि आंदोलनकारियों को आश्वासन देकर मना लिया जाए। क्योंकि सरकार इस पदयात्रा के जरिए ऐसा कोई संदेश नहीं जाने देना चाहती कि मुख्यमंत्री के इलाके में ही पट्टे नहीं मिल रहे हैं और जिनके पास पट्टे हैं, वे कब्जे को तरस रहे हैं।” दरअसल, मुख्यमंत्री चौहान को जब भी जनता से सीधे संवाद का मौका मिलता है, चाहे वह नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा रही हो या सरकारी अथवा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कोई आयोजन, उनकी बातों के केंद्र में गरीब, बेघर, भूमिहीन रहे हैं। वह अपनी सरकार को गरीबों का रहनुमा बताते हैं। वह लगातार वादे करते आ रहे हैं कि प्रदेश में कोई भी परिवार बेघर नहीं रहेगा, और भूमिहीनों को भूमि के पट्टे दिए जाएंगे।
सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित पदयात्रा मुख्यमंत्री के दावों पर सवाल खड़े कर देगी, साथ ही राजनीतिक विरोधियों को एक मुद्दा मिल जाएगा। यही कारण है कि सरकार ने प्रशासनिक अमले से लेकर कुछ मंत्रियों के जरिए एकता परिषद के जिम्मेदार लोगों से संपर्क कर बातचीत की पहल की है, ताकि 18 फरवरी से पहले ही उनकी मांगों का समाधान कर लिया जाए और यह पदयात्रा न निकाली जाए।
एकता परिषद का कहना है कि राज्य में वर्ष 2002-04 के बीच तीन लाख एकड़ चरनोई की जमीन साढ़े तीन लाख भूमिहीनों को बांटी गई थी, जिसमें से 60 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिन्हें अब तक इन जमीनों पर कब्जा नहीं मिला है।
एकता परिषद ने पिछले दिनों ग्वालियर में प्रदेश के विभिन्न स्थानों से प्रतिनिधियों को बुलाकर एक बैठक आयोजित कर भूमि संबंधी प्रकरणों, वनाधिकार अधिनियम के अमल पर चर्चा की थी, जिसमें एक बात सामने आई थी कि पूरे प्रदेश में आदिवासियों को इस अधिनियम का लाभ नहीं मिल रहा है। बैठक में मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र की जमीनी हकीकत का पता लगाने का निर्णय हुआ था। इसी आधार पर बुधनी में युवा शिविर आयोजित हुआ।  सूत्रों के मुताबिक, बुधनी शिविर में पता चला कि इस विधानसभा क्षेत्र में पांच हजार जनजातीय परिवारों को वनाधिकार अधिनियम के तहत जमीन नहीं मिली है। कई ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें कागजी तौर पर तो पट्टे मिल गए हैं, मगर कब्जा दबंगों का है।

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