‘इस्लाम के प्रति नकारात्मक धारणा का मुकाबला कर सकता है सूफीवाद’
नई दिल्ली | पाकिस्तानी पत्रकार व लेखिका रीमा अब्बासी का मानना है कि पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रति व्याप्त नकारात्मक धारणा का मुकाबला सूफीवाद के जरिए किया जा सकता है। रीमा अब्बासी ने दिए साक्षात्कार में बताया, “मौजूदा समय में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जैसी किसी हस्ती और सूफी शिक्षाओं की बहुत आवश्यकता है। यह इस्लामी कट्टरपंथी कृत्यों, कट्टरपंथी तत्वों और पूरी दुनिया में फैल रहे बेहद गंभीर संदेशों की काट करता है।”
उन्होंने कहा कि सूफीवाद बेहद खूबसूरत और सभी को साथ लेकर चलने वाला ऐसा संदेश देता है जिसे आमतौर से इस्लाम के साथ संबद्ध नहीं किया जाता। ‘द हेराल्ड’ पत्रिका, द न्यूज इंटरनेशनल में काम कर चुकीं और ‘डॉन’ समाचार पत्र की सहायक संपादक रह चुकीं रीमा अपनी दूसरी किताब ‘अजमेर शरीफ : अवेकनिंग ऑफ सूफिज्म इन साउथ एशिया’ के लांच के सिलसिले में दिल्ली आई थीं।
अपनी किताब में उन्होंने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के रहस्यमयी प्रभाव और उनकी आध्यात्मिक यात्रा का जिक्र किया है। किताब अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ी खास बातों को दर्शाती है।
उन्होंने कहा, “ख्वाजा जी का संदेश उस संदेश से बहुत अलग है जिसे आमतौर से आज इस्लाम से जोड़कर देखा जाता है। सूफीवाद और शेष इस्लाम के बीच समग्रता व बहुलता के संदेश के संबंध में अंतर है, जिसे कट्टरपंथी नहीं मानते हैं।”
रीमा अब्बासी यूनेस्को से 2003 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। 2014 में वर्ष के साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में राजीव गांधी पुरस्कार से नवाजी जा चुकी हैं।उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और दुनिया भर में फैले आतंकवाद का गरीबी से गहरा संबंध है।
वह कहती हैं, “पाकिस्तान और दुनिया भर में फैले आतंकवाद का गरीबी से गहरा संबंध है। यहां तक कि मदरसे भी गरीबों का शोषण कर रहे हैं। अधिकांश माात-पिता को अपने बच्चों को मदरसे भेजने के लिए पैसे दिए जाते हैं, जहां उन्हें कट्टरपंथी बातों पर यकीन दिलाया जाता है।”
रीमा ने कहा कि वह भारत को अपना दूसरा घर मानती हैं और उन्होंने यहां राष्ट्रीयता के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव का सामना नहीं किया है। नीदरलैंड में जन्मी और इंग्लैंड में स्कूली व कराची में कॉलेज की शिक्षा ग्रहण करने वाली रीमा दो दशकों से मुख्यधारा की मीडिया से जुड़ी हुई हैं।