कतर्नियाघाट में दिखती हैं दुर्लभ बया
‘दुर्लभ सुलभ’, यह बात कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के लिए सटीक बैठती है। आज से एक दशक पहले गांव-गांव में बया के एक मंजिल से लेकर तीन मंजिल तक के घोंसले आसानी से देखे जा सकते थे, लेकिन अब गांव-देहातों में बया और उसके घोंसले का दर्शन दुर्लभ हो गया है, लेकिन कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग आज भी एक ऐसी जगह है, जहां इन घोसलों को और बया के परिवारों को आसानी से देखा जा सकता है। प्रकृति प्रेमियों का मानना है कि बया जितना सुंदर घोंसला बनाती है, उतना सुंदर कोई दूसरी चिड़िया अपना घर नहीं बना पाती।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि बया एक ऐसी चिड़िया है, जिसके घोसलों में रात के समय प्रकाश की भी व्यवस्था होती है। बया पहले अपने घोसलों में तालाब के किनारे से गीली मिट्टी लेकर आती है और उसको घोसलों में चिपकाने के बाद अपनी चोंच से जुगुनू पकड़कर ले आती है और उसी गीली मिट्टी में जुगुनू को चिपका देती है, जिससे उसके घोंसले में प्रकाश की व्यवस्था हो जाती है।
सभी चिड़िया ज्यादातर दो डालियों के बीच अपना घोंसला बनाती हैं, लेकिन बया एक डाली पर इस तरीके से अपना घोसला बनाती है कि वह हर वक्त झूलता रहे। इससे उसे दो लाभ है। ऐसे घोंसलों में प्रपक्षियों का भी खतरा कम रहता है और दूसरा बया और उसका परिवार झूला झूलने का भी आनंद उठा लेता है।
पर बया एक ऐसे नस्ल की चिड़िया है, जहां नर द्वारा कर्म किए जाने की परंपरा कायम है। नर पहले घोंसला बनाता है। जब घोंसला आधे से अधिक बन जाता है तो वह विशेष प्रकार की आवाज निकालकर मादाओं को आकर्षित करता है और इनकी मादाएं भी काफी सूझ-बूझ से अपने जीवनसाथी को चुनने का निर्णय लेती हैं। मादा बया कई अर्धनिर्मित घोसलों में जाकर और उसमें बैठकर पहले जांच करती है और जब वह सुनिश्चित कर लेती है कि कौन-सा घोंसला उसके और उसके आने वाले परिवार के लिए सुरक्षित होगा, तभी वह नर बया का निमंत्रण स्वीकार करती है।
बया के घोंसले सुंदर होने के साथ साथ काफी मजबूत होते हैं क्योंकि बया जमीन पर पड़े हुए किसी खर पतवार से अपना घोसला नहीं बनाती, बल्कि मजबूत किस्म के ताजे खर पतवार को चोंच से काटकर लाती है और अपनी विशेष तकनीक से घोंसले की बुनाई करती है। अक्सर देखने में आया है कि ये अपने परिवार की जनसंख्या के अनुसार, इसे एक मंजिला से लेकर तीन मंजिला तक बना डालती हैं, जो देखने में सुंदर होने के साथ ही काफी मजबूत भी होता है।
बया के संबंध में जब प्रभागीय वनाधिकारी कतर्नियाघाट से पूछा गया कि आजकल बया कहीं नहीं दिखाई देती है तो फिर कतर्नियाघाट में इतनी आसानी से क्यों सुलभ है, तो उन्होंने जवाब दिया, “हम लोगों ने कतर्नियाघाट के संबंध में ‘दुर्लभ ही सुलभ’ है स्लोगन इसलिए प्रचलित किया है कि यहां चिड़ियों और जानवरों की कई ऐसी प्रजातियां हैं, जो यहां आसानी से देखी जा सकती हैं और इसी कारण अब कतर्नियाघाट में लगातार पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है।”