भगत सिंह के जन्म दिवस 27 सितंबर पर विशेष.. बंदूको से नाता है मेरा
कहते हैं ‘पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं’।
पांच वर्ष की बाल अवस्था में ही भगतसिंह के खेल भी अनोखे थे। वह अपने साथियों को दो टोलियों में बांट देता था और वे परस्पर एक-दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था।
एक बार सरदार किशनसिंह इस बालक को लेकर अपने मित्र श्री नन्द किशोर मेहता के पास उनके खेत पर गए। दोनों मित्र बातों में लग गए और बालक भगत अपने खेल में लग गया।
नन्द किशोर मेहता का ध्यान भगतसिंह के खेल कि ओर आकृष्ट हुआ। भगतसिंह मिट्टी के ढेरों पर छोटे-छोटे तिनके लगाए जा रहा था।
उनके इस कार्य को देखकर नंद किशोर मेहता बड़े स्नेहभाव से बालक भगतसिंह से बातें करने लगे-
‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?” श्री नंदकिशोर मेहता ने पूछा।
बालक ने उत्तर दिया-‘‘भगतसिंह।”
‘‘तुम क्या करते हो ?”
‘‘मैं बंदूकें बेचता हूं।” बालक भगतसिंह ने बड़े गर्व से उत्तर दिया।
‘‘बंदूकें…?”
‘‘हां, बंदूकें।”
‘‘वह क्यों ?”
‘‘अपने देश के स्वतंत्र कराने के लिए।”
‘‘तुम्हारा धर्म क्या है ?”
‘‘देशभक्ति। देश की सेवा करना।”
श्री नन्द किशोर मेहता राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। उन्होंने बालक भगतसिंह को बड़े स्नेहपूर्वक अपनी गोदी में उठा लिया। मेहता जी उसकी बातों से अत्यधिक प्रभावित हुए और सरदार किशन सिंह से बोले, ‘‘भाई ! तुम बड़े भाग्यवान् हो, जो तुम्हारे घर में ऐसे होनहार व विलक्षण बालक ने जन्म लिया है। मेरा इसे हार्दिक आशीर्वाद है, यह बालक संसार में तुम्हारा नाम रोशन करेगा। देशभक्तों में इसका नाम अमर होगा।”
वास्तव में समय आने पर मेहता की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।
लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया।
भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया
भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।