WORLD HEALTH DAY 2018 : जानलेवा डिप्रेशन देता है गंभीर बीमारियों को न्योता
भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में डिप्रेशन एक बड़ी बीमारी के रूप में उभर कर सामने आ रही है। दूसरे देशों में इस बीमारी को गंभीरता से लिया जाता है लेकिन भारत में आज भी बहुत से लोग इसे कोई बीमारी नहीं मानते हैं, इसलिए भारत में लगातार डिप्रेशन के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।
पूरी दुनिया में 7 अप्रैल को वर्ल्ड हेल्थ डे (world health Day) मनाया जा रहा है। इसी बहाने से ही सही, आइए हम डिप्रेशन, डिप्रेशन के लक्षण और उपचार से विस्तार से चर्चा करते हैं।
भारत में आज भी काफी लोग डिप्रेशन का इलाज कराने में झिझकते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में। डिप्रेशन गंभीर रोगों और डिस्ऑर्डर के ख़तरे बढ़ाने का काम करता है। इनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति, डायबिटीज और दिल के रोग प्रमुख हैं, जिनकी वजह से दुनिया की ज्यादातर आबादी दम तोड़ देती है।
मुरादाबाद के स्टेट केजीके होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. एसएस यादव डिप्रेशन को जानलेवा बताते हैं। इस रोग से शरीर के प्रमुख अंग बुरी तरह प्रभावित होते हैं। डॉ. यादव के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी में रोजाना चार–पांच मरीजों में डिप्रेशन के लक्षण मिल रहे हैं।
उन्होंने बताया, “डिप्रेशन के मरीजों को सारी दुनिया बेकार लगती है, कुछ अच्छा नहीं लगता। लाइफ से सेटिसफाई नहीं रहते। कुछ में तो सुसाइडल बिहैवियर भी देखने को मिलता है। ज्यादा उम्मीदें पालने वाले लोगों के अरमान पूरे न होना भी डिप्रेशन की बड़ी वजह है।”
भारत के संदर्भ में भी डिप्रेशन से प्रभावित रोगियों के आंकड़े अच्छे नहीं हैं। पिछले साल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस द्वारा 12 राज्यों में किए गए सर्वे के मुताबिक भारत में हर 20 लोगों में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत दुनिया के सर्वाधिक डिप्रेस्ड देशों की सूची में शामिल है और लगभग 36 प्रतिशत आबादी ने इसका सामना किया है या कर रही है। डब्ल्यूएचओ की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भारत ऐसा देश है जहां सबसे ज़्यादा मौतें आत्महत्या की वजह से हुईं।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के चीफ मारगारेट चान के मुताबिक डिप्रेशन के आंकड़े दुनिया के सभी देशों के लिए खतरे की घंटी हैं। उन्हें मानसिक सेहत को बनाए रखने के तौर–तरीकों के बारे में गंभीरता से विचार–विमर्श करने की ज़रूरत है।
डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक रोग है। इसका रोगी उदासी में जीता है। रोजमर्रा के क्रियाकलापों में कोई रुचि नहीं होती और न ही उसके काम करने की क्षमता सामान्य होती है। विश्व में इस मनोरोग से 322 मिलियन लोग प्रभावित हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, डिप्रेशन आमतौर पर मूड में आने वाले उतार चढ़ावों और कुछ देर तक टिकने वाले मनोवेगों से अलग है। लेकिन जब ये चीजें लम्बे समय तक औसत या बहुत अधिक तीव्रता से किसी व्यक्ति के जीवन में घटित होती हैं तो सेहत गंभीर रूप से प्रभावित होती है। इन वजहों से प्रभावित व्यक्ति को कार्यस्थल हो या स्कूल या फिर परिवार, कहीं भी कुछ नहीं सुहाता।
डब्लूएचओ के मुताबिक दुनिया में वर्ष 2005 से अबतक 18 प्रतिशत की दर से डिप्रेशन में इजाफा हुआ है। लेकिन मानसिक सेहत से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में ज्यादातर लोगों को सही इलाज नसीब नहीं हो पाता। नतीजतन ऐसे लोग सेहतमंद जिंदगी नहीं जी पाते।
डिप्रेशन के आधे से भी कम लोगों को नही मिलता सही इलाज
डब्लयूएचओ के अनुसार, देखने में आया है कि डिप्रेशन से प्रभावित आधे से भी कम लोगों को ही सही इलाज मिल पाता है। पर्याप्त संसाधनों और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों के अभाव में ऐसे रोगियों के इलाज में बड़े रोड़े हैं। उस पर मेंटल डिसऑर्डर पर समाज की उपेक्षापूर्ण सोच भी डिप्रेशन से दो-दो हाथ करने में आड़े आ रही है।
डॉ. यादव का कहना है कि लक्षणों की सही पहचान होने पर होम्योपैथी में डिप्रेशन का बेहद कारगर इलाज है क्योंकि इस विधा से इलाज करते वक्त रोगी का मनोविज्ञान डॉक्टर को समझना जरूरी समझा जाता है। उनके मुताबिक डिप्रेशन के रोगियों को पहले हफ्ते से ही आराम मिलने लगता है। काउंसलिंग भी बेहद जरूरी होती है। गीता का सार बताकर भी रोगियों को दिलासा दिया जाता है।
बता दें कि मेडिकल साइंस में डिप्रेशन के औसत और तीव्र अवस्थाओं से गुजर रहे रोगियों के लिए प्रभावी इलाज की सुविधाएं मुहैया हैं। इनमें बिहैवेरियल एक्टिवेशन, कॉग्निटिव बिहैवेरियल थेरेपी (सीबीटी), इंटरपर्सनल सायकोथेरेपी आदि ट्रीटमेंट्स प्रमुख हैं।
कुछ अहम तथ्य
– 13 से 15 आयुवर्ग के चार में से एक किशोर डिप्रेशन का शिकार है।
– डिप्रेशन दुनियाभर में फैले रोगों के पीछे की अहम वजह है।
– डिप्रेशन से जूझने में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है।